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वह प्रेम का प्रकाश है, एकान्त है, आश्रय है, आहृाद है।’ मैंने अन्यत्र इस बात को दिखलाया है कि ईश्वर ने स्त्रियों को जो सौन्दर्य दिया है, वह एक धरोहर के रूप में और पृथ्वी पर उसकी सत्ता का विस्तार करने के लिये दिया है। मनुष्य प्रकृति से अविवेकी है और यदि उस पर किसी प्रकार का नियन्त्रण न हो तो वह शीघ्र ही स्वेच्छाचारी होकर पतनोन्मुख हो जाय। अतः स्त्री का यह कर्तव्य होता है कि वह जिस प्रकार पुरुष की गृहिणी बनकर उसकी गृहस्थी का प्रबन्ध करती है, उसी प्रकार उसकी आभ्यन्तर सम्पत्ति की भी सँभाल रखे। उसे चाहिये कि वह इस लोक में अपने पति को गृहस्थी के लिये ऐसा योग्य बनावे कि जिससे वे दोनों ही परलोकमें भी सुखपूर्वक रह सकें। पुरुष को यदि अकेला छोड़ दिया जाय तो वह संसार को दफ्तर या कारखाना बना डालेगा। नारी ही उसे गृहस्थी के रहने के योग्य सुरम्य स्थान बना सकती है।
सुन्दरता और उदारता ये दो गुण परमात्मा ने स्त्री जाति को ही दिये हैं। पुरुष एक स्थान पर नहीं टिक सकता, उसके पैरों को शनीचर लगा रहता है, जो उसे वाष्पचक्र (Steam Roller) की भाँति एक द्वीप से दूसरे द्वीप में घुमाता है। परन्तु वाष्पचक्र की भाँति सड़क कूटने से ही काम नहीं चलता, सड़क के कूटे जाने के बाद आध्यात्मिक मनोवृत्तिरूपी जल से साहित्य और कला, सेवा और विश्वप्रेम तथा धर्मनिष्ठा और आध्यात्मिक भावनारूपी मार्गवर्ती वृक्षों को भी सींचना पड़ता है, जिससे कि वे वृद्धिगत होकर मार्ग चलने वाले यात्रियों को छाया और पुष्पों का सौरभ प्रदान करें और मधुर फलों से उन्हें तृप्त करें और यह काम नारी-जाति का है। अर्थशास्त्र और राजनीति के अध्ययन एवं मनन में ही जीवन की सार्थकता नहीं है। सौन्दर्य, आहृाद, धर्मनिष्ठा और पवित्रता ये ऐसे गुण हैं, जो जीवन के लिये उतने ही आवश्यक हैं, जितेने अन्य कोई हैं। इतना ही नहीं, जीवन-डोरी के सबसे बारीक धागे ये ही हैं। यही नहीं, परमात्मा की यह एक विचित्र लीला है कि नारी के शरीर में आनन्द और उत्पादक शक्ति दोनों एक-दूसरे से मिली हुई है। सच्चा ईश्वरीय आनन्द उत्पादकता में ही है। जीव का परमात्मा के साथ संयोग यहीं होता है। अंग्रेजी का विख्यात कवि बायरन कहते हैं- मनुष्य जहाँ जाता है, विध्वंस ही करता है।
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