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इस विषय का अज्ञान इसकी सारी कमज़ोरियों में प्रधान और अत्यन्त भयंकर है। आज मनुष्य अज्ञान एवं मूढ़ता के वश यह समझता है कि संसार में जितनी भी रमणीयता और आनन्द है, वह स्त्रियों तक ही सीमित है एवं यदि संसार में स्त्री-जाति का अस्तित्व उठ जाय तो संसार की रमणीयता और आहलाद में बहुत कुछ कमी आ जाये। प्राकृतिक सौन्दर्य विचित्र है और वह भगवान की विभूतियों में से एक है। किन्तु यह उनकी अपरा विभूति है। उनकी परा विभूति जीव हैं, जिनमें स्फूर्ति और भवव्य ज्चकता अधिक है। इस पराविभूति का पूर्ण विकास, रमणी के मुख में , उसके कमल जैसे नेत्रों में जो लज्जा और माधुर्य से युक्त मूक एवं विशुद्ध प्रेम से परिपूर्ण रहते हैं और उसके अष्टमी के चाँद जैसे ललाट में जो उसके सुगन्धित बालों की अन्धकारमय रात्रि को जगमगा देता है हुआ है। किन्तु यह बाहरी सुन्दरता यद्यति एक आश्चर्यमय रहस्य है, फिर भ वह उस गूढ़ नैतिक एवं आध्यात्मिक सौन्दर्य का बाह्म आवरणमात्र ही है, जिसके अतिरिक्त इस संसार में दूसरी कोई सत्ता और प्रकाश नहीं है।
रमणी के मुख में हमें ‘उसी मनोहर रूप की झाँकी मिलती है, जिसको आँख नहीं देख सकती। उसकी वाणी में भी हमें उसी माधुर्य संगीत की भनक सुनायी देती है, जिसकी थाह कान नहीं पा सकते।’मैंने अन्यत्र लिख है कि ‘सौन्दर्य देश और काल से सीमित नहीं है। वह मर्यादा और पृथक्ता के आवरण को छिन्न-भिन्न कर डालता है और उस धाम में पहुँचा देता है, जहाँ देश और काल की सत्ता का अभाव है और जो पूर्णता के अत्यन्त समीप है। यही कारण है कि हम सदा सौन्दर्य को ही चाहते हैं और हमारी यह सौन्दर्य-लिप्सा दिनों दिन बढ़ती जा रही है। इसीलिये हम सदा ‘उन दृश्यों को देखने के लिये उत्सुक रहते हैं, जिनका युवक कवि ग्रीष्म ऋतु के सन्ध्या-काल में किसी परिचित नदी के तट पर बैठकर स्पप्न देखा करते हैं।’ नारी केवल सौन्दर्य की ही नहीं, अपितु शान्ति, सौम्यता और प्रेम की भी अधिष्ठात्री देवता है। प्रसिद्ध अंग्रेज कवि शेली अपने ‘एपिसाइककिडियन’ नामक काव्य में एक जगह कहता है- ‘‘नारी, मालिन्ययुक्त भ्रू-भंग के बीच में मृदु हास्य की रेखा की समान है, कर्कश स्वरों के बीच में सौम्य वाणी के समान है।
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