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ये ऐसी समस्याएं है, जिन्हें हम किसी प्रकार से भी सन्तोषपूर्वक हल नहीं कर सकते। उनको हल करने का प्रत्येक उपाय ऐसा होता है, जो न तो हमारी उच्च प्रकृति को भाता है और न हमारी निकृष्ट वृति को को रूचता है। ऐसे प्रसंगों में हमारे लिये सर्वदा इधर कुँआ और उधर खाईवाली गति (Hobson’s choice) उपस्थित हो जाती है और उस समय हमें उन दो बुराईयों में से उस एक को स्वीकार करना ही पड़ता है, जो दूसरी की अपेक्षा हलकी होती है। उदाहरणार्थ कवि मटरलिंग (Maeterlinck) द्वारा रचित Mona vanna नामक काव्य में एक जगह एक विजयी सेनानायक काव्य की नायिका से कहता हैं कि यदि तुम अपने नगर को ध्वंस से बचाना चाहती हो तो रात्रि के समय हमसे मिलों। सन् 1040ई में इंग्लैण्ड में एक ऐसी ऐतिहासिक घटना घटित हुई थी (जिसे कवि टेनीसन Tennyson ने अपने Lady godiva नामक काव्य में स्थान दिया है।) घटना इस प्रकार है, अर्ल लिओफ्रिक Earl leofric नामक एक नृशंस एवं क्रूर पति ने अपनी प्रतिष्ठा एवं दयामयी साध्वी पत्नी से कहा कि मैंने अपनी प्रजा के ऊपर जो भारी जुर्माना किया है, यदि तुम उसे माफ करना चाहती हो तो तुम्हें नंगी होकर नगर में घूमना पडे़गा। इस प्रकार के प्रसंग Blind alley themes कहलाते हैं।
यहाँ उक्त नायिका दोनों विकल्पों में से किसी भी एक को स्वीकार करती, पर समीक्षक लोग तो उसकी निन्दा ही करते। क्योंकि वे लोग कल्पना से भी अपने को उस परिस्थिति में रखने का कष्ट नहीं उठाते। भीष्म, द्रोण तथा कर्ण का वध भी स्पष्टतया एक ऐसी समस्या थी श्रीकृष्ण ने इसका जो निर्णय किया, वह हमारी (स्थूल) दृष्टि में बहुत ही असन्तोषजनक है। हमें वह तभी उचित जँचता है, जब हम यह सोचते है इस समस्या का निर्णेता एक ऐसा पूर्णावस्था को पहुँचा हुआ पुरुष था, जिसका सांसरिक पदार्थों में कोई स्वार्थ नहीं था और जिसकी स्थिति हम लोगों की अपेक्षा बहुत ही ऊँची थी। परमेश्वर जब किसी परिश्रमी नवयुवक को, जो अपने कुटुम्ब का एकमात्र आधार होता है, उठा लेता है और उसके अन्धे, वृद्ध एवं पक्षाघात से पीड़ित पिता को आजन्म रोने कलपने के लिये संसार में छोड़ देता है, उस समय उसके न्याय को देखकर हमें अवश्य ही बहुत आश्चीर्य होता है।
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