श्रीकृष्णांक
श्रीरासलीला का रहस्य
इसी तरह अन्यान्य देवताओं की बातें हैं। कामविजयी तो एकमात्र श्रीकृष्ण भगवान ही हुए। इसीलिये जब तक मनुष्य काम पर विजय प्राप्त न कर ले तब तक वह भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला देखने-सुनने का अधिकारी नहीं हो सकता। इसी से देवताओं को भी रासलीला देखने का अधिकार प्राप्त नहीं हुआ था। रासलीला में भगवान श्रीकृष्ण नायक थे और श्रीराधिका जी नायिका थी। अन्यान्य ब्रजगोपियाँ श्रीकृष्णकी साक्षात प्रकाशस्वरूपा थी। यहाँ काम के भाव का लेश भी नहीं था, केवल प्रेम था। यहाँ काम के बाहर प्रेमराज्य की वस्तु है। प्राकृत दृष्टि लोग श्रीकृष्ण का व्रजगोपियों के साथ जो आलिंगादि व्यवहार हुआ था, उसको कामक्रीड़ा कहकर भ्रम करते हैं। परन्तु भगवान की यह क्रीड़ा केवल प्रेममयी थी। श्रीधर स्वामीजी महाराज कहते हैं- 'श्रृंगाररसकथापदेशेन विशेषतो निवृत्तिपरेयं पंचाध्यायी' ’श्रृंगार रस की कथा के बहाने निवृत्ति परा यह राजपश्चाध्यायी वर्णित होगी। इसमें एक भी कथा प्रवृत्तिपरा नहीं है। श्रीपाद सनातन गोस्वामीजी ने भी लिखा है- 'ह्लादिनीशक्तिविलासलक्षणपरमप्रेममय्येवैषां रिरंसा न तु काममयीति ।' अर्थात इस रासलीला की रिरंसा ह्रादिनी-शक्ति का अनादि विलास है। यह काममयी कदापि नहीं है। यह भी एक प्रत्यक्ष प्रमाण है कि श्रीशुकदेव जी निवृत्ति मार्ग में परिपूर्ण थे, उन्होंने भी जो रासलीला का वर्णन किया है, उसको कामपरा नहीं समझा है। यदि यह लीला कामपरा होती तो वे कदापि मुमुर्षु धार्मिक राजा परीक्षित के सामने इसका वर्णन नहीं करते। इससे सिद्ध होता है, कि यह लीला श्रीराधाशक्ति के साथ शक्तिमान श्रीकृष्ण का अनादि सिद्ध स्वाभाविक विलास है। इसमें प्राकृत काम की गन्धमात्र नहीं है। काम प्राकृत वस्तु है और श्रीकृष्ण अप्राकृत हैं। अप्राकृत श्रीकृष्ण कदापि प्राकृत काम के अधीन नहीं हो सकते। श्रीमहादेवजी ने काम की पीड़ा से उत्तेजित होकर एक समय मदन को दहन कर डाला था। पर श्रीकृष्णका प्रभाव देखिये, करोड़ों व्रज-युवतियों के सामने काम को अपनी सम्पूर्ण शक्ति प्रयोग करनेकी आज्ञा दे दी, परन्तु कामदेव में श्रीकृष्ण को मोहन करने की शक्ति ही उत्पन्न नहीं हुई, वरन् श्रीकृष्ण के सौन्दर्य को देखकर काम स्वयं मोहित हो गया। इसी से श्रीकृष्ण का नाम मदनमोहन हुआ। श्रीचैतन्य चरितामृत में कहा गया है- 'जिनि पंचशर दर्प, स्वयं नव कन्दर्प बाल्य, पौगण्ड और कैशोर के भेद से श्रीकृष्ण की लीला त्रिविध है। ’रासलीला’ भगवान श्रीकृष्ण की कैशोर-लीला है। पाँच वर्ष की अवस्था तक आपने बाल-लीला की। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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