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त्रिलोकीनाथ ! छोड़ी लोक-कल्याण की कलित-कामना भी। जैसे अपने स्वार्थ की कामना त्याज्य है, वैसे ही लोक-कल्याण की कामना, परमार्थ की कामना भी आखिर कामना ही है। इसलिये अब छोड़ी ये सब सांसारिक कामनाएं। संसार तुम्हारा और तुम संसार के, मैं अपने प्राण व्यर्थ ही क्यों सांसत में डालूँ ? तुम कराओगे लोकसेवा मेरे द्वारा तो मैं करूँगा। नहीं तो मुझे उससे क्या सरोकार ? उसकी इच्छा भी मैं क्यों करूँ। यों ही मुफ्त में चिन्ता की चिता जलना पड़े। बस, एक ही इच्छा है, एक ही अभिलाषा है, एक ही चिन्ता है, एक ही फ़िक्र है, एक ही भूख है, एक ही प्यास है, सब कुछ बस एक यही कि किसी प्रकार तुम्हारा दर्शन प्राप्त करूँ। कैसे तुम्हारी मंजुल मूर्ति नयन भरकर निहारूँ। कब तुम्हारी मुरली की तान से कर्ण कुहरों को पवित्र करूँ, किस दिन यह देह तुम्हारी सेवा से कृतकृत्य होगी। आओ, कृष्ण, मेरे प्रेम से आकृष्ट होकर आओ। मेरी पुकार से पिघलकर पधारो। मैं तुम्हारे लिये व्याकुल हूँ।
हाय, क्या कहूँ और किससे कहूँ, कोई सुने तब तो ? यहाँ रोना-धोना, अनुनय-विनय सब कुछ बेकार है।......... सुनो, नाथ ! तुम्हें मेरी सौगन्ध है। सुनो, इतने निर्मोही न बनो। मोहन ! मेरे भी आखिर जी है। कोई पत्थर नहीं हूँ ? इसलिये दया करो। अब अधिक न तरसाओ, देखो न, तुम्हारी प्रतीक्षा में कब से खड़ा हूँ ? कब का तृषित नेत्रों से तुम्हारा मार्ग निहार रहा हूँ। करुणाकर ! एक बार करुणाकोर से निहारो। जरा देखो इधर, तुम्हारे आने के लिये मैंने पलक पांवडे़ बिछा रखे हैं, तुम्हारे पधारने के लिये मन मंदिर बुहार रखा है, बैठने को हृदयासन बिछा रखा है, पादप्रक्षालन के लिये नेत्रों से निर्झरिणी बहा रखी है, गले को सुशोभित करने के लिये इन कमनीय करों ने बड़ी सुन्दर माला तैयार की है। निराशा के निविड़ अंधकार में, आशा का दीपक जलाकर, उसके प्रकाश में विचार-वाटिका से ढूंढ-ढूंढकर सुन्दर सुवासित सुमनों का संग्रह करके मैंने इसे प्रस्तुत किया है। एक-एक पुनीत पुष्ट को परम प्रेम-रस से सींचकर स्वच्छ किया है और फिर उन्हें ध्यान के धागे में पिरोया है। बीच-बीच में बड़ी साध से सुनहले सुमिरन के सितारे गूँथकर इसकी सुन्दरता को बढ़ाने की चेष्टा की है। बड़ा ही सुन्दर बना है यह हार श्यामसुन्दर ! अपनी भीनी-भीनी मृदुल महक से यह पेड-पत्तों तक में महक उत्पन्न कर रहा है। क्या इसके स्पर्श से सुवासित हुआ समीर तुम तक नहीं पहुँचा ? अवश्य पहुँचा होगा वनमाली ! अब देर क्या है ! आओ, इसे धारणकर इसका सौभाग्य जगाओ, और मेरी साध मिटाओ !
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