भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
कंस की कृपा
‘धन्य हैं वसुदेव जी।’ शिशु को लेकर राजपथ से वसुदेव जी को कंस भवन की ओर जाते देखकर नागरिक श्रद्धा-विभोर हो उठे- ‘धन्य है वसुदेव जी का सत्य-प्रेम। सत्य के प्रति ऐसी निष्ठा लोक में दुर्लभ है।’ ‘वसुदेव जी महापुरुष हैं, अन्यथा अपना नवजात पुत्र कौन राक्षस को इस प्रकार देने जायगा।’ जब से कंस ने राजपथ पर देवकी का केश पकड़ा था, उसके प्रति अधिकांश नागरिकों के हृदय का सम्मान समाप्त हो गया था। लोग उसे राक्षस कहने लगे। वे कहते थे- ‘जो अपनी छोटी बहिन को विवाह के दिन मारने को उद्यत हो गया, वह मनुष्य नहीं हो सकता। वह कोई भी दुष्कर्म कभी भी कर सकता है।’ ‘कंस इस शिशु का क्या करेगा?’ अनेकों के मन में प्रश्न उठा। कुछ ने परस्पर कहा भी। ‘यह देवकी का प्रथम पुत्र है। इससे कंस को कोई भय तो है नहीं।’ यही एक आश्वासन था सबके लिए और इसी से किसी ने कोई सक्रिय पद नहीं उठाया। सब प्रतीक्षा करने के पक्ष में थे। ‘कंस कुछ भी करे, वसुदेव जी का धैर्य अद्भुत है।’ युदुबृद्ध ने भी प्रशंसा की ‘इतना धैर्य, इतनी हृदय की दृढ़ता सुनने में भी कम ही आती है।’ वसुदेव जी का ध्यान इन सब बातों की ओर नहीं था। उनके कर्ण जैसे बहरे हो गये थे। पथ में कोई सामने मिलता भी है, यह भी वे देख नहीं पाते थे। वे केवल चल रहे थे। तीव्रगति से उनके पद उठते जा रहे थे। कंस को उसके सेवकों ने पहले ही सब समाचार दे दिया था। पुत्र हुआ और तत्काल उसे लेकर वसुदेव आ रहे हैं, इस समाचार से कंस प्रसन्न हुआ। वसुदेव इतनी तत्परता से अपने वचन का पालन करेंगे, ऐसी आशा उसे नहीं थी। वह समझता था कि पहले वसुदेव का सन्देश आवेगा- ‘युवराज! आपके भागनेय हुआ है। आप पधारेंगे यहाँ अथवा जातकर्मादि के अनन्तर मैं उसे आपके समीप ले आऊँ? आप अनुमति दें तो उसे षष्ठीपूजन के अनन्तर सातवें दिन आपके सम्मुख उपस्थित करूँ। कंस ने सोचा था कि वसुदेवजी की ऐसी किसी प्रार्थना को वही उदारतापूर्वक स्वीकृति दे देगा; किन्तु वसुदेव तत्काल बालक को लेकर चल पड़े हैं, इस समाचार को पाकर वह सन्तुष्ट हुआ। ‘वसुदेव अपने वचन पर दृढ़ रहने वाले हैं।’ उसके हृदय ने स्वीकार किया। वह अपने भवन के सभागृह में अपने सिंहासन पर बैठ गया। ‘वसुदेव जी को तत्काल मेरे सामने पहुँचाया जायें!’ कंस ने प्रहरी को आज्ञा दे दी। इधर वह यदुवंशियों से सशंक रहने लगा था। उसके भवन पर उसके विश्वस्त प्रहरी नियुक्त थे और स्वजन-सम्बन्धी भी बिना अनुमति के भवन में प्रवेश नहीं पाते थे। ‘युवराज आपके आगमन की प्रतीक्षा ही कर रहे हैं!’ प्रहरी ने वसुदेव जी को अभिवादन करके उन्हें सभाकक्ष में जाने का संकेत कर दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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