श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
82. यदुकुल को शाप
महाराज उग्रसेन के समीप उस समय यदुकुल के वृद्धजन उपस्थित थे। उन सबके सम्मुख कुमारों ने वह मुशल रख दिया और जो कुछ भूल हो गयी थी, पूरी घटना सुना दी। कुमारों का कान्तिहीन उदास मुख देखकर महाराज उग्रसेन ने चित्त में करुणा उमड़ी। उन्होंने कह दिया -‘जो हो गया उस पर अब विषाद करना व्यर्थ है। इस मुशल को रेतकर चूर्ण करके समुद्र में डाल दो।’ इतना बड़ा काण्ड, सम्पूर्ण कुल के नाश का शाप और मुशल प्रत्यक्ष, किन्तु किसी को श्रीकृष्णचन्द्र से कुछ कहने-पूछने की आवश्यकता प्रतीत नहीं हुई। जो महाराज उग्रसेन छोटी-से छोटी बात भी श्रीकृष्णचन्द्र की सम्मति लेकर ही करते थे, उन्होंने इस बार स्वयं आदेश दे दिया। शाप को, मुशल को महत्ता ही नहीं दी गयी। महत्ता दी गयी कुमारों के कान्तिहीन मुख को। उनको संकोच न हो, उनको पिता से कुछ खरी-खोटी न सुननी पड़े इस बात को प्रमुखता प्राप्त हो गयी। उपाय सबको उचित लगा। मुशल को प्रयत्न-पूर्वक रेता गया। उसके चूर्ण का कोई कर्ण भूमि में न रह जायें, यह सावधानी रखी गयी। रेतने पर एक छोटा टुकड़ा बच गया तो पकड़ में न आने के कारण उसे रेता नहीं जा सकता था। वह टुकड़ा और सब चूर्ण समुद्र में डाल दिया गया। ‘पानी में पड़ा लौह चूर्ण अतल सागर में डूब जायगा।’ यह धारणा सबको निश्चिन्त करने के लिए काफी थी किन्तु समुद्र की लहरें भीतर पड़ी वस्तुओं को किनारे पर फेंक देती हैं। इस चूर्ण को भी लहरों ने तट पर फेंक दिया प्रभास क्षेत्र में। वह मुशल कोई लोहा तो था नहीं। वह तो ऋषियों के शाप से उत्पन्न था। उसके कणों में संहार का संस्कार बीज था। सृष्टि के सब चर-अचर शरीर संस्कार बीज से ही बने हैं। वे मुशल के कण तट पर आकर एरका तृण[1] बनकर उग आये और बढ़े। चूर्ण करने से बहुत अधिक कण हो गये थे। अतः दूर तक एरका की घास सागर किनारे तट पर प्रभास में खड़ी हो गयी। वह घास वहाँ अब भी बहुत है समुद्र किनारे। जो छोटा लौह-खण्ड बचा था, वह घिसने से चमकीला हो गया था। उसे एक मछली कोई प्राणी समझकर निगल गयी। वह मछली जरा नामक व्याध की वंशी में फँसी। मछली के उदर से जब वह तीक्ष्ण नोंकवाला लौह-खण्ड निकला तो उसे उस व्याध ने अपने बाण की नोंक बना लिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ लम्बे-चौड़े पत्ते वाली घास है। ढाई-तीन फुट तक लम्बे ओर ढाई-तीन इंच चौड़े पत्ते होते हैं। अनेक स्थानों में इस जलीय तृण को चीड़कर चटाइयाँ बुनी जाती है।
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