विषय सूचीभागवत सुधा -करपात्री महाराजषष्ठ-पुष्प 2. माया संतरण का अमोघ उपायइस तरह जीवों ने भगवान् से प्रार्थना की ‘अर्जित! ‘अजां जहि’, ‘हे अजित! माया को मारो।’ भगवान् ने कहा- हम माया को मार देंगे, इससे तुम्हारा क्या होगा? तुम माया को मरवा कर करोगे भी क्या? तुम माया से घबराते हो न? तुम मेरी शरणागति स्वीकार कर लो, मेरे प्रति प्रपन्न हो जाओ- (मुझे परमेश्वर की यह त्रिगुणात्मिका माया दुस्तर है। जो मुझ माया पति परमेश्वर के ही सर्वात्मभाव से शरणागत हो जाते हैं, वे माया से पार हो जाते हैं।) विक्रीडितं ब्रजवधूभिरिदं च विष्णोः इसी तरह विचार करना चाहिये- शरीर में चेतना कहाँ से आती है, माया से ही आती है न! आत्मचैतन्योपेत- आत्मचैतन्य के प्रतिबिम्ब से युक्त जो देहव्यापिनी अन्तःकरण की वृत्ति वही चेतना है। उस चेतना के कारण ही हम को शीत-उष्ण का ज्ञान होता है। चेतना न हो तो कोई व्यवहार ही न चले। इसलिये जो कुछ व्यवहार चल रहा है, वह सब चेतना के आधार पर। वह चेतना क्या है? माया का ही एक अंश है। धर्म के लिये अर्थ के लिये वृद्धि चाहिये। कथा सरितसागर में लिखा है- किसी के पास पूँजी नाम की चीज एक भरी हुई चुहिया थी। किसी की बिल्ली बीमार थी, उसने उसकी मरी चुहिया खरीद ली। उसी पैसे से वह करोड़पति बन गया। अच्छी बुद्धि होती है तो एक फील्डमार्शल एक छोटी-सी सेना की टुगड़ी के द्वारा बड़े से बडे़ सेनापतियों को परास्त कर देता है। कर्म का ज्ञान बुद्धि से होता है, बुद्धि न होगी तो कर्म का ज्ञान कैसे होगा? श्रुत्वा धर्मान्विजानाति ज्ञात्वातदनुतिष्ठिति’ धर्म का ज्ञान होता है तो धर्मानुष्ठान में सौविध्य होता है। ज्ञान और भक्ति के लिये बुद्धि चाहिये। जहाँ आत्मसाक्षात्कार बुद्धिवृत्ति का परिणाम है, वहाँ आह्लादिनी-शक्ति-समन्वित जो स्निग्ध अन्तःकरण की भगवदाकाराकारित बुद्धिवृत्ति है[8] वही भगवद्भक्ति है। वह बुद्धि भी क्या है, माया- या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिया[9] कई व्यक्तियों को नींद नहीं आती। एक दिन इन्द्र को नींद नहीं आयी। अश्विनीकुमार वैद्य को बुलाया और कहा- ‘नींद नहीं आ रही है।’
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भगवद् गीता 7.14
- ↑ भागवत 2.7.53
- ↑
‘मायातरणार्थ जिज्ञासुभिश्चिन्त्यते यत्तितीर्षितं भगवति तत्प्रथमं जिज्ञास्यते एव’।(वंशीधरी, भागवत 11.6.11)
माया तरने की जिन्हें इच्छा है, ऐसे जिज्ञासुओं के लिये माया चिन्तन करने योग्य है, क्योंकि जिसे तरने की इच्छा जिज्ञासा उसका चिन्तन अत्यावश्यक है। - ↑ भगवद्गीता 7.14
- ↑ दुर्गासप्तशती 5.14
- ↑ भागवत 10.33.40
- ↑ दुर्गासप्तशती 5.17
- ↑ मनोवृत्ति
- ↑ दुर्गासप्तशती 5,20
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