विषय सूचीभागवत सुधा -करपात्री महाराजसप्तम-पुरुष 3. राजा बलि की सत्य-निषराजा बलि ने कहा- ‘गुरुदेव! ठीक है। पर आपका शिष्य होकर झूठ बोलूँ, मुकर जाँऊ? अगर विष्णु है तब तो हमें जीतकर भी सब कुछ ले लेगा। हिरण्याक्ष को मारा की नहीं? यह तो हमारा सौभाग्य है, माँगने आया है। इसका हाथ नीचे होगा! हमारा हाथ ऊपर होगा!’ 4. धर्मनिरपेक्ष या धर्मसापेक्ष?हरिश्चन्द्र से लोगों ने पूछा- ‘‘कहिये महाराज! आप धर्मसापेक्ष होंगे कि धर्म-निरपेक्ष! यदि आप धर्म-सापेक्ष होते हैं तो आपकी स्त्री बिक जायगी, आपका राजकुमार बिक जायगा। आपका राज्य चला जायगा। आप डोम का गुलाम बन जाओगे। यदि आप धर्म-निरपेक्ष होंगे तो आपकी स्त्री बिकने से बच जायगी- बनी रहेगी, राजकुमार बना रहेगा, आपका राज्य बना रहेगा, आप डोम के गुलाम नहीं बनंगे। बोलिये क्या मंजूर है, धर्म-सापेक्ष या धर्म-निरपेक्ष?’’ राजा हरिश्चन्द्र ने कहा- ‘‘अरे भाई क्या बोलते हो? अरे अन्न बिना कुछ दिन प्राण चल सकता है। हम अन्ननिरपेक्ष हो सकते हैं, जल बिना कुछ दिन काम चल सकता है, हम जलनिरपेक्ष हो सकते हैं। राज्य बिना भी काम चल सकता है, हम राज्यनिरपेक्ष भी हो सकते है। पर भाइयों! धर्म बिना हम एक दिन भी नहीं जी सकते, धर्म-निरपेक्ष हम कैसे रह सकते हैं? इसलिये धर्म-निरपेक्ष नहीं होंगे। राज्य जाय तो जाय, रानी बिके, राजकुमार भी बिके तो बिके, मुझे भी डोम का गुलाम बनना पडे़ तो पडे़। पर हम धर्म-निरपेक्ष नहीं रहेंगे, हम धर्म-सापेक्ष रहेंगे।’’ आजकल लोग सापेक्ष का अर्थ करते हैं पक्षपात। कौन से कोश में (कौन-सी डिक्सनरी में) ऐसा अर्थ है? कोई बतलाने का कष्ट नहीं करते। हम हर जगह कहते हैं लोगों से, भाई कोई तो बताओ, जबाब तो दो कि किस डिक्सनरी में अपेक्षा शब्द का अर्थ लिखा है पक्षपात। कोई बाबा जी अन्न नहीं पाते आप कह सकते हैं बाबा जी अन्ननिरपेक्ष हैं। नंगे रहते हैं बाबा जी, आप कह सकते हैं बाबा जी वस्त्र निरपेक्ष हैं। इस तरह जरूरत का नाम है अपेक्षा। जिसको जिस चीच की जरूरत नहीं वह उससे निरपेक्ष है। तुमको धर्म की जरूरत नहीं तो तुम धर्म-निरपेक्ष हो। इसका मतलब वे-दीन, बे-ईमान, बे-धर्म होना पसन्द है। यदि हम बे-दीन, बे-ईमान, बे-धर्म होते हैं तो हमारे मत में गाली है। किसी को बे-दीन, बे-ईमान, बे-धर्म कहना गाली देना है। इस दृष्टि से भाई, धर्म सापेक्ष बनें कि धर्म-निरेपेक्ष? धर्म-सापेक्ष बनना ही उपयुक्त है। इस प्रकार राजा बलि ने दृढ़ता पूर्वक सत्य का पालन करना ही उचित समझा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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