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भागवत सुधा -करपात्री महाराज
2. पुरुषार्थ चतुष्टय प्रदायक निगमकल्पतरु:-
निगमकल्पतरु पुरुषार्थ चतुष्टय का साधन है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों ही दे सकता है। हाथों-हाथ भगवान को पकड़ा सकता है निगमकल्पवृक्ष। मन्त्र-ब्रह्मणात्मक अनादि अपौरुषेय वेद ही निगमकल्पतरु हैं। उस निगमकल्पतरु से धर्म,अर्थ, काम और मोक्ष चारों ही पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। इसी निगमकल्पतरु का गलित फल है श्रीमद्भागवत। गलित अर्थात परिपक्व। परिपक्व फल होने पर भी अमलात्मा महामुनीन्द्र भगवान शुकदेव जी के मुखारविन्द से प्रादुर्भूत है। इसलिए कहा गया है- ‘निगमकल्पतरोर्गलिंत फलं शुकमुखादमृतद्रवसंयुतम्।’
3. रसामालयम्:-
श्रीमद्भागवत रस ही है। इसका निरन्तर पान करना चाहिए। एतावता मालूम पड़ता है कि यह सामान्य शब्दात्मक नहीं है। यह तो शुद्ध रसात्मक ही है। जैसे निखिलरसात्मकसारसर्वस्व साक्षात् परमात्मा श्रीकृष्णचन्द्र परमानन्दकन्द के रूप में प्रकट हो जाते हैं, परात्पर परब्रह्म प्रभु श्रीमद्राघवेन्द्र रामचन्द्र मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रकट हो जाते हैं; वैसे ही वह रस ही श्रीमद्भागवत के रूप में प्रकट होता है। ‘रसवत्’ है ऐसा नहीं। ‘गुणबचनात् मतुप् का लोप हुआ है’ यह कहने की आवश्यकता नहीं। रसवत् कहना है तब तो ‘रसोअस्यास्तीति’ इस अर्थ में ‘मतुप्’ का लोप हुआ है, ऐसा कहा जा सकता है। यहाँ तो रसतादात्म्य की विवक्षा है। अतः श्रीमद्भागवत रसस्वरूप ही है। इसलिए ‘पिबत’ कहा गया है। नहीं तो फल पिया नहीं जाता, चूसा जाता है, खाया जाता है। जो चूसा जाता है उसमें वकला होता है, कुछ गुठली होती है। इस तरह कुछ त्याज्य अंश होता है, वहाँ
चूसना कहा जाता है। पर यहाँ त्याज्य अंश कुछ भी नहीं है। श्रीमद्भागवत का ‘अथ’ से ‘इति’ तक कोई भी अंश त्याज्य नहीं है। सब रसस्वरूप ही है। इसलिये इसे पियो, पीने की चीज है। बोले-‘कब तक पियें?’ कहा -‘आलयम्’ मोक्ष हो जाने पर भी पियो।
4. आत्माराम का भी भगवद्गुणगणार्णव में अवगाहन:-
प्रायेण मुनयो राजन् निवृत्ता विधिषेधतः ।
नैर्गुण्यस्था रमन्ते स्म गुणानुकथने हरेः ।।[1]
राजन् ! जो निर्गुण ब्रह्मात्मतत्त्व में स्थित हैं; विधि-निषेध की सीमाओं को पार कर चुके हैं, ऐसे मुनीन्द्रगण श्रीहरि के अनन्त कल्याणमय गुण-गणों के वर्णन में प्रायः रमें ही रहते हैं।
तत्त्वदर्शी ब्रह्मात्मसाक्षात्कार सम्पन्न मुनीन्द्रगण विधि-निषेधपारंगत होने पर भी भगवान के गुणानुकथन में रमण करते हैं। भगवान के गुणगणार्णव में अवगाहन करते रहते हैं।
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