विषय सूचीभागवत सुधा -करपात्री महाराजअष्टम-पुष्प 3. लतओं तक को प्रेम प्रदान करने वाले ‘श्रीराम’हमारे श्री सनातन गोस्वामी जी बोलते हैं- सन्त्ववतारा बहवः पुष्कनाभस्य सर्वतो भद्राः। (भले पुष्करनाभ के अनेक एक-से-एक अन्छे अवतार हैं तो लताओं में प्रेम प्रदान करने वाला कृष्ण से अन्य कौन हैं?) सनातन गोस्वामी जी महाराज बड़े सन्त-महापुरुष थे। अपने प्रेम में जो कुछ कहा, वह सब हमारे सिर-माथे। बड़ा आदर करते हैं हम उनका। लेकिन वाल्मीकि की रामायण को देखें तो मालूम पड़ता है कि रामभद्र के वियोग में नदियों का जल खौल उठा। वृक्षों के पुष्प -अंकुर सभी परिम्लान हो गये, भगवान रामचन्द्र के विप्रलम्भ जनित तीव्र ताप में- अनुगन्तुमशक्तास्त्वां मूलैरुद्धतवेगिनः। अपनी जड़ों के कारण वेगहीन पादप तुम्हारा अनुगमन करने में असमर्थ हैं। वायु वेग से ये उन्नत पादप आपसे लौटने के लिये चीत्कार कर रहे हैं।) लीनपुष्कर पत्राश्च नद्यश्च कलुषोदकाः। (नदियों के जल मलिन हो गये हैं उनके कमलों के पत्ते निलीन प्राय हो गये हैं- सूख गये हैं। नदियों-सरोवरों की कमल एवं कमलिनियाँ सन्तप्त हो गयी हैं। उनके मीन एवं विहंगमयगण लुप्त हो गये हैं।) |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अवताराः सन्त्वन्ये सरसिजनयनस्य सर्वतोभद्राः।
कृष्णादन्यः को वा प्रभवति गोपगोपिकामुक्त्यै।।(श्रीकृष्णकर्णामृतम् 2.85) - ↑ वाल्मीकि रामायण 2.45.30
- ↑ वाल्मीकि रामायण 2.59.7
- ↑ वाल्मीकि रामायण 2.59.1
- ↑ श्रीहत सर सरिता बन बागा। नगरु विसेषि भयावनु लागा।।
खग मृग हय गय जाहिं न जोए। राम वियोग कुरोग वियोए।।
जबतें आई रहे रघुनायकु। तब ते भयउ बन मंगल दायकु।।
फूलहिं फलहिं विटप विधिनाना। मंजु बलित कर बेलि विताना।।
सुरतरु सरिस सुभायँ सुहाए। मलहुँ बिबुध बन परिहरि आए।।
गुंज मंजु तर मघुकर श्रेनी। त्रिविधि वयारि बहुइ सुख देनी।।
नीलकंठ कुल कंठ सुक चातक चक्क चकोर।
भाँति-भाँति बोलहिं बिहंग श्रवन सुखद चितचोर।।(रामचरित मानस 2.137)
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