भागवत सुधा -करपात्री महाराज13. भगवतत्त्व का अनुसंधान -तैत्तिरीय शैली में महाभूतान्यहंकारो बुद्धिरव्यक्तमेव च[2] पुराण कहता है- उस अखण्ड अनन्त पुरुषोत्तम भगवान से अव्यक्त की उत्पत्ति हुई। अव्यक्त भी निर्गुण, निष्कल ब्रह्म में प्रविलीन हो जाता है। ‘तस्मादव्यक्तमुत्पन्नं त्रिगुणं द्विज सत्तम’[5] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (तैत्तिरीयोपनिषद् 2/1)
- ↑ (भगवत् गीता 13/5)
- ↑
मन इति मनसः कारणमहंकारो गृह्यते।
बुद्धिरित्यहंकार कारणम महत्तत्त्वम् ।
अहंकार इत्य विद्या संयुक्तम व्यक्तम् ।
यथा विषसंयुक्तमन्नं विषमुच्यते एवमहंकारकारणवासना दव्यक्तमूल कारण हंकार
इत्युच्यते प्रवतं कृत्वादहंकारस्या हंकार एव हि सर्वस्य प्रवृत्तिबीजं दृष्टं लोके ।(भगवद् गीता, शांकर भाष्य)
6-अ नरसिंह पुराणे सर्ग० 1/41 श्रीपाद्ये महापुराणे स्वर्ग खण्डे 2/6 - ↑ भगवद्गीता 7|4
- ↑ (महाभारत शान्तिपर्व 334/31)
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