विषय सूचीभागवत सुधा -करपात्री महाराजअष्टम-पुष्प 13. श्री वृन्दावनधामकुछ लोग कहते हैं कि भगवान की अभिव्यक्ति का स्थल ही वृन्दावन धाम है। अद्वैतसिद्धान्तपरिनिष्ठित प्रबोधानन्द सरस्वती श्री वृन्दावनधाम को सच्चिदानन्द बताते हैं- भगवदाकार से आकारित वृत्ति पर भगवत्त का प्राकट्य होता है, उसे भी वृन्दावन कहते हैं। इस तरह साभास अव्याकृत एवं साभास चरमावृत्ति को भी वृन्दावन कहते हैं। इसीलिये जो महानुभाव वृन्दावन के उपासक होते हुए भी प्रसिद्ध वृन्दावन में प्रारब्धवश नहीं रह पाते, वे भी व्यापी-वैकुण्ठ, कारण-तत्त्व स्वरूप ब्रह्म के व्यापक होने से, तत्स्वरूप वृन्दावन का प्राकट्य शक्तिबल से कहीं भी रहकर सम्पादन करते हैं। आनन्द वृन्दावन चन्पू में लिखा है- वृन्दावन माने ‘सकलगुणवृन्दावनम्’ सकल गुण-गणों का वृन्द। ‘वृन्दाया यौवनं वृन्दावनम्’ वृन्दावन वृन्दा का यौवन है अर्थात वृन्दा का देदीप्यमान स्वरूप ही है। व्ररजांगनावृन्दस्य वनं जीवनं वृन्दावनम्’ ब्रजांगनावृन्द का जीवन ही वृन्दावन है। ‘वृन्दस्य गुणसमूहस्य, गुणिसमूहस्य अवनं यस्मात् तत् वृन्दावनम्’, भक्तवृन्दानां अवनं यस्मात्, लोकोत्तरकल्याणगुणगणानां अवनं यस्मात् तत् वृन्दावनम्’ अर्थात रसिकवृन्द, गुणवृन्द, लोकात्तर कल्याण गुणगण, गुणिबृन्द का संत्राणरक्षण जिससे है, वह श्री वृन्दावन है। हमने पहले कहा श्रीवृन्दावन धाम क्या है? पूर्णानुरागरससारसरोवर समुदूभूत सरोज है। सच्चिदानन्द रससार से भी श्रेष्ठ पूर्णानुरागरससार है। पूर्णानुरागरससार सरोवर में जो तत्सारसर्वस्वभूत पंक उससे समुद्भूत पंकज है श्रीवृन्दावन। उसके बीच में जो कणिका है, उसमें जो पीली केसरें हैं, वही हैं गौरागीं गोपागंनायें। उनमें जो पराग है वह श्रीकृष्णचन्द्र परमानन्दकन्द मदन मोहन हैं। पराग में जो मकरन्द है वही हैं राधारानी वृषभानुनन्दिनी नित्य निकुंजेश्वरी। इससे भी ऊँची बात क्या है? श्री राधारानी का हृदय श्रीवृन्दावन धाम है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आनन्द वृन्दावनचम्पूः 1.17
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