भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
उपसंहार
संपूर्ण व्रजभूमि में कही कोई हो तो पता लगाओ। मैं उसके दर्शन करना चाहता हूँ। परीक्षित ने कई सेवक चारों ओर भेजे। अंतत: इस प्रदेश के इस प्रकार प्राणिहीन होने का कारण भी तो ज्ञात होना चाहिए। कोई वनभूमि, मरुस्थल भी ऐसा प्राणिहीन सुना नहीं गया। सेवकों को व्रज में एकमात्र व्रजराज नंद के पुरोहित महर्षि शाण्डिल्य की कुटिया मिली। वे तपोधन परीक्षित का आगमन सुन कर स्वयं चले आए। परीक्षित और वज्रनाभ ने जब उनका सविधि पूजन कर लिया और उनके चरणों के समीप बैठ गए, महर्षि बोले – वत्स ! तुम लोगों के यहाँ आगमन की ही प्रतीक्षा कर रहा था। इस दिव्यधाम का उद्धार होना चाहिए। यह पुण्यपुरी लुप्त न हो जाए, इसलिए में यहाँ रुका था। यह कार्य पूरा कराके मुझे हिमालय चले जाना है। व्रजधरा दिव्य नित्य धाम है। श्रीकृष्ण चंद्र के अवतरण के पूर्व ही उनका धाम पृथ्वी पर प्रकट हुआ। जब तक वे पुरुषोत्तम इस पृथ्वी पर रहे, धाम व्यक्त रहा। सामान्य लोगों के लिए दृश्य रहा। जब वे भगवान जनार्दन स्वधाम पधारे, उनका धाम भी अव्यक्त हो गया। महर्षि ने कहा – जो प्राणी उस नित्यधाम में थे, वे तो धाम के प्रभाव से, धाम के साथ नित्यलोक में उन सच्चिदानन्दघन की नित्यलीला में योग देने चले गए। अत: अब यह पूरा व्रजमंडल प्राणिहीन हो गया है। 'धन्य यह धरा ! धन्य वे प्राणी जो यहाँ किसी भी रूप में रहें' परीक्षित के नेत्र भर आए। किंतु अब इसका निर्जनत्व? वज्रभान ने अपनी समस्या का समाधान चाहा। वत्स ! तुम्हें दो कार्य करने हैं। महर्षि ने स्नेहपूर्वक आदेश दिया – श्रीकृष्ण चंद्र के लीलास्थल कहाँ क्या हैं, कहाँ कौन – सा तीर्थ, सरोवर कुण्ड या देवालय था, यह मैं तुमको बतला दूंगा। तुम वहाँ उनका निर्माण करवाओ। इससे मोक्षदायिनी पुरी का पुनरुद्धार हो जाएगा। मस्तक झुकासर वज्रभान ने स्वीकार किया। इसमें उन्हें कई लाभ मिलने थे। सबसे पहले तो एक उत्तम कार्य मिल गया था। बिना किसी कार्य के इस निर्जन प्रदेश में रहना कठिन हो रहा था। इस कार्य के बहाने महर्षि का सान्निध्य मिल रहा था कुछ काल को। इन निर्माण के लिए कलाकार, श्रमिक आदि आएंगे। जनहीनता भंग होगी, भले थोड़े काल को हो। तीर्थ का पुनरुद्धार होगा तो तीर्थ यात्री आने लगेंगे। उनमें कुछ को संपूर्ण सुविधा देकर यहीं रह जाने को कहा जा सकता है। दूसरा कार्य है कि यहाँ के लोगों के संबंधी, उनके संपर्क में आए लोगों का पता लगाओ और उनको आग्रहपूर्वक लाकर बसाओ। व्रज में जो भी थे उनके स्वजन, संबंधी यहाँ बसाओ। महर्षि ने दिशा प्रदान की। केवल मनुष्यों की ही बात नहीं। पशु, पक्षी आदि प्राणी भी समीप के प्रदेशों से ले आओ। ऐसे ले आओ जिनका व्रज से संबंध रहा हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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