भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
सुभद्रा–जन्म
‘वह देवी है, योगमाया है’ पता नहीं लोग कंस से सुनकर क्या-क्या कहते हैं उसके विषय में। यादवों ने तो उसका एक नाम भी रख लिया है–एकानंशा और उसकी आराधना करना भी कुछ ने प्रारम्भ कर दिया है; किन्तु माता देवकी को यह सब रुचता नहीं। वह उनकी है–उनकी बच्ची और भूखी गयी है। इसलिए उनकी गोद फिर भरने को बहुत आतुर है। वसुदेव जी पत्नी की व्यथा समझते हैं। वे जैसे भी बने दु:खिया देवकी को सन्तुष्ट रखना चाहते हैं। उनके और भी पत्नियां हैं। दैव अवसर देगा तो पुत्रों से घर भर जायेगा; किन्तु देवकी के छ: पुत्र मार दिये गये। एक है– वही आशा है सबकी; किन्तु वह दूर है। नारायण उसे सकुशल रखें। देवकी का आतुर-भूखा वात्सल्य गोद में शिशु चाहता है– स्वाभाविक है। ‘वह आयी– वही आयी थी’ माता देवकी ने उस दिन प्रात: उठकर अपने स्वामी से कहा– ‘अब उसे कोई निष्ठुर कर मुझसे नहीं छीनेगा। वह इस बार मेरे भीतर प्रवेश कर गयी–यह मैंने स्वप्न में देखा है।’ बड़े प्यार से उन्होंने अपने उदर पर हाथ फेरा। महर्षि गर्गाचार्य गोकुल से लौटे थे और वहाँ का समाचार देकर गये थे। रात्रि में माता गोकुल गये अपने इन्दीवर सुन्दर के सम्बन्ध में ही सोचती हुई सो गयी थी। बहुत प्रसन्न थीं वे उस दिन और बहुत प्रसन्न थे वसुदेव जी भी। मन पर से भार उतर गया था महर्षि की भविष्यवाणी सुनकर। ब्रह्ममुहूर्त में यह अदभुत स्वप्न माता ने देखा था। शीघ्र ही स्पष्ट हो गया कि वे अन्तर्वत्नी हैं।[1] इस बार माता देवकी बहुत प्रसन्न हैं। वे अनेक बार स्वामी से कहती हैं– ‘वही आवेगी–देख लेना, उसी को आना है। बेचारी क्षुधातुर चली गयी थी। मेरा दूध अब उसी का तो है। अब इस पर उसका–केवल उसी का स्वत्व रह गया है।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ‘पुत्रान् प्रसुषुवे चाष्टौ कन्यां चैवानुवत्सरम्।’ (श्री मदभागवत् १०.१.५६) सुभद्रा एक वर्ष छोटी है श्यामसुन्दर से और बलरामजी से उनसे दो वर्ष बड़े हैं। वसुदेव जी के शेष पुत्र बहुत छोटे हैं। बलराम जी के अन्य भाई तो जब रोहिणी जी ग्यारह वर्ष व्रज में रहकर लौटीं तब हुए।
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