भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
राम-श्याम आये
नवीन पताकायें फहरायी गयीं गृहों पर सुसज्जित ध्वजदण्ड में। नागरिकों ने अपने द्वार के सम्मुख मार्ग पर विविध चित्रांकन किया चूर्ण, हरिद्रादि से। द्वार के दोनों ओर कदली स्तम्भ खड़े किये। आम्रपल्लव मण्डित जलपूरित कलशों पर नारिकेल रखा। द्वार पर तोरण लटकाया। ‘वसुदेव के महापराक्रमी पुत्र आवेंगे आज।’ अधिकांश नागरिक अपने घरों में स्पष्ट कह रहे थे– ‘उनके स्वागत की पूरी सज्जा करो।’ बहुत से विप्रो ने ही नहीं, नगर के प्रमुख व्यवसायीजनों ने भी स्वागत का सम्भार सजा लिया था। दोनों कुमार यदि उनके द्वार के सम्मुख से निकलें तो वे उनका पूजन करेंगे– उन्हें उपहार अर्पित करेंगे। ‘उँह, कंस कुछ कहे ही तो बहाना अच्छा है।’ नागरिकों ने परस्पर हँसकर कहा था– ‘वे आपके भागिनेय हैं। आपने उन्हें अपना निजी स्यन्दन भेजकर आमन्त्रित किया। आप स्वयं नगर-सज्जित करने का आदेश देकर सज्जा देखने निकले। हम महाराज के ऐसे आदरार्ह का स्वागत न करने का अपराध कैसे कर सकते थे।’ कंस का भय लोगों के हृदय में अवश्य था; किन्तु पता नहीं क्यों वह बहुत कम–सुप्तप्राय हो गया था आज। आज तो व्रज से आने वाले अलौकिक कुमारों के दर्शन के लिए लोग व्याकुल थे। कंस ने दोपहर से पूर्व ही नगर देख लिया। अनेक स्थानों पर उसने विशेष सज्जा के आदेश दिये। जब अक्रूर ने सुना दिया कि वे दोनों कुमार आ गये तो वह रंगशाला देखने चला गया; किन्तु वहाँ से शीघ्र लौट आया। आज वह कहीं भी उन दोनों के सम्मुख नहीं पड़ना चाहता था। क्या पता कि वे नगर देखने निकलें या रंगशाला ही देखने आ पहुँचे। रंगशाला अब भी सजायी जा रही थी। स्वर्ण के घटों में जल भरकर स्थान-स्थान पर रखा जा रहा था। वहाँ कंस के सेवक जल पिलाने बैठेंगे। कंस की योजना थी कि सब सैनिक, सशस्त्र इन सेवाओं में कल रहें। वे प्रेक्षागार के प्रत्येक नागरिक पर दृष्टि रखेंगे और उनकी उपस्थिति पर कोई आपत्ति भी नहीं कर सकेगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज