भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
श्रीरणछोड़राय
मगधराज धार्मिक था। ब्राह्मण भक्त था। शास्त्र में उनकी श्रद्धा थी। संयमी था और प्रसिद्ध दानशील था। कालयवन के समान उनका भी यही दोष था कि वह घोर अहंकारी था। दुर्जन राजाओं का संरक्षक बन बैठा था और भगवद् विमुख था। भगवान से विमुख व्यक्ति की रक्षा धर्म कैसे कर सकता है? कालयवन ने एक भूल की थी – बिना मुहूर्त की चिंता किए युद्ध करने चल पड़ा था। अब तक जरासन्ध भी यही भूल करता आ रहा था इस बार उसने ब्राह्मणों को बुलाया। उत्तम ज्योतिषियों से उसने सुनिश्चित विजय देने वाले मुहूर्त की गणना करवाई और अपनी विजय के निमित्त अनुष्ठान करने के लिए बहुत से ब्राह्मणों का वरण करके उनके आवास आहार तथा अनुष्ठान की व्यवस्था कर दी। पूरा प्रयत्न किया जरासन्ध ने सैन्य संग्रह का। उसके सभी समर्थकों ने प्रयत्न किया। जरासन्ध ने नियम ही कर रखा था कि उसके ऐसे प्रयत्नों में जो नरेश का साथ न दें, उन्हें बलपूर्वक बंदी बना कर अपने कारागार में बंद कर देता था। इस बार उसने यह नहीं किया। उसने सर्वत्र कहला दिया – यह उनका अंतिम प्रयत्न है। जो भी उसका साथ देंगे, इस बार उनका आभार वह जीवन भर मानेगा, किंतु इस बार उसे पूरे उत्साह से युद्ध करने वाले श्रेष्ठतम योद्धा चाहिए। तेईस अक्षौहिणी सेना मगधराज तथा उसके समर्थकों की सैन्य संग्रह सीमा बन गई थी। इस बार भी इस सीमा को पार नहीं किया जा सका। यह संख्या बनी रह गई, यही बहुत बड़ी सफलता समझना उचित था। कालयवन तत्काल चल पड़ा था। दूर से आना था उसे। शाल्व से समाचार पाकर जरासन्ध ने प्रयत्न किया कि वह यथाशीघ्र सैन्य संग्रह कर ले। मुहूर्त पर प्रस्थान करके मगधराज मार्ग में कालयवन की प्रतीक्षा करना चाहता था, लेकिन यवन अश्वारोही सेना अनुमान से अधिक शीघ्रगामिनी सिद्ध हुई। मार्ग की बाधाओं को अप्रयास ही उसने पार कर लिया। कहीं भी कालयवन ने चार – छ: दिन का पड़ाव नहीं डाला था। जरासन्ध को समाचार मिलता रहा था। वह प्रस्थान कर चुका था और बिना रुके केवल सेना को रात्रि – विश्राम देते पूरे वेग से बढ़ा आ रहा था, किंतु यह अनुमान कौन कर सकता था कि कालयवन जैसा उद्भट महारथी मथुरा के युद्ध में आकर पहले दिन ही समाप्त हो जाएगा ? मगधराज तो समझता था कि कालयवन की सेना युद्ध प्रारंभ करेगी, दो या तीन दिन पीछे ही वह पहुँच जाएगा सहायता करने और मुख्य युद्ध स्वयं संम्हाल लेगा। कालयवन को केवल सहायक बना रहने देगा यवन सेना के साथ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज