भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
व्रजपति-मिलन
‘वे गोपों के साथ मथुरा आये हैं।’ सेवक ने कहा– ‘उनके साथ बहुत से छकड़े हैं। मार्ग में मैं मिला तो समीप बुलाकर सन्देश देने के लिए कहा उन्होंने। महाराज को वार्षिक कर देकर वे लौट रहे थे। नगर के बाहर आम्रोपवन में उनके छकड़े रुकेंगे।’ ‘देवि! वज्रपति आये हैं।’ वसुदेव जी ने अपने अन्त:पुर में जाकर देवकी जी को समाचार दिया– ‘नीतिज्ञ हैं वे। उनका यहाँ आना उचित नहीं है, कंस को कोई सन्देह नहीं होना चाहिये, यह वे समझते हैं। मैं मिल आता हूँ उनसे।’ ‘आप मिल आइये!’ देवकी जी ने कहा– ‘वे बड़े हैं, उन्हें मेरा प्रणाम कह दें और जीजी का समाचार तो वे स्वयं देंगे आपको। बहुत दिन हो गये उनका सम्वाद पाये।’ श्री नन्दराय जी आयु में वसुदेव जी से पर्याप्त बड़े थे। यों गोप कन्याजात होने के कारण वे अपने को वसुदेव जी से छोटा मानते थे; किन्तु वसुदेव जी अग्रज के समान ही उनका सम्मान करते थे। ‘वसुदेव जी अपने हैं; किन्तु कंस की क्रूर दृष्टि है इन दिनों उन पर। कंस स्वभाव से शंकालु है। उसे कोई सन्देह हो यह उचित नहीं।’ गोपों से नन्दराय जी ने कहा था– ‘हमारे इतने छकड़े हैं। इनके बैलों को चरने की भी सुविधा चाहिये। नगर में इनके लिए सुविधा कहाँ।’ ‘हम गोप हैं। हमें आहार मिले या न मिले, हमारी गायों-बैलों को चारा-घास या चरने की सुविधा पहले चाहिये।’ सन्नन्द जी ने समर्थन किया– ‘यमुना किनारे आमों के उपवन में छकड़े रुके और बैल चरने को छोड़ दिये जायें। वहाँ इनके जल पीने का भी सुपास है।’ लगभग मध्यान्ह हो चुका था। गोपों ने स्नान किया मध्यान्हकालीन, और छकड़ों में अपने लिए दोपहर का भोजन तो वे साथ ही ले आये थे। सब भोजन करके उठे ही थे कि वसुदेव जी का रथ आ गया। वज्रपति दोनों भुजायें फैलाकर भाई से मिलने आगे बढ़े। देर तक दोनों लिपटे रहे एक-दूसरे से। साथ आये नन्द जी के भाइयों से भी मिले वसुदेव जी। गोपों ने उन्हें अभिवादन किया। वहीं हरित दूर्वा से श्यामल भूमि पर गोपों ने छकड़ों से उतारकर वस्त्र बिछा रखे थे। सब एकसाथ बैठ गये उन पर मण्डलाकार। वसुदेव जी एवं नन्द जी को सब ने बीच में कर लिया। ‘भाई! आप स्वजनों के साथ सकुशल तो है।?’ वसुदेव जी ने पूछा- ‘जहाँ वृहद्वन में आप इस समय हैं, वहाँ पशुओं के लिये पर्याप्त घास, जल और आप सबके लिए फलदार वृक्ष हैं? आपके पशु निरोग, सबल हैं?’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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