भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
माता रोहिणी आयीं
कितना सम्मान दिया उन्हें व्रजपति और व्रजरानी ने। वे दोनों जैसे सेवक थे–अनुजा थीं व्रजरानी, ऐसे रहीं। इतना स्नेह, इतना सम्मान![3] अन्तत: वे जेठानी थीं; किन्तु सदा अनुगता रहीं। लगा ही नहीं कि व्रज में दूसरे के घर में वे रहीं हैं। श्याम मथुरा में हैं–व्रजरानी ने, सबने ही तो हठ करके भेजा माता रोहिणी को। ‘सचमुच माता होने पर देवकी को क्या पता कि उसके पुत्र को कब कैसा व्यंजन, कैसे वस्त्र, कैसा अंगराग रुचता है। कृष्ण कितना संकोची है, यह दूसरों को–मथुरा में किसी को क्या पता। वह कष्ट सहता रहेगा; किन्तु किसी से कहेगा नहीं।’ माता का कहना है– ‘कृष्ण को स्वयं अपनी रुचि, अपने सुख, अपनी सुविधा का पता नहीं होता। वह तो बाल्यकाल से देना ही देना चाहता है। उसे सदा दूसरों की ही धुन रहती है। उनका पूरा ध्यान न रखो तो भूखा ही घूमेगा। भूखा ही सो जायेगा। उसे तो यह भी नहीं ध्यान रहता है कि शीतकाल में शीतल जल से हाथ-पैर धोने पर उसके कर-चरण कैसे ठिठुरते और अधिक लाल हो जाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ एकादश समास्तत्र गूढ़ार्चि: सबलोअवसत्।।-भागवत 3-2-26 श्रीकृष्णचन्द्र ग्यारह वर्ष 6 महीने (महाशिवरात्रि तक) व्रज में रहे। श्रीबलराम एक वर्ष बड़े थे।
- ↑ माता रोहिणीजी के पुत्र थे– बल, गद, सारण, दुर्मद, विपुल, ध्रुव और कृत (भागवत 9-24-46) इसमें से बल–श्रीबलराम प्रथम हैं। इनका जन्म व्रज में हुआ। अत: शेष पुत्र रोहिणी जी के व्रज से आने पर हुए। यदि देवकी जी के समान उनके भी प्रति वर्ष सन्तान हुई हो तो भी श्रीबलराम जी से उनके सबसे छोटे भाई कृत को कम से कम लगभग 19 वर्ष छोटा होना चाहिये। वसुदेव जी श्रीकृष्ण जन्म से तुरन्त बाद मथुरा आये नन्दराय से कहा– ‘प्रजाशाया निवृत्तस्य प्रजायत् समपद्यत;’ (भागवत 10-5-23)। श्रीनन्दराय की आयु पुत्रोत्पादन की सीमा पार कर रही थी–पर वसुदेव जी के तो उसके 20 वर्ष पीछे भी पुत्र हुए। अत: वसुदेव जी-रोहिणी जी की आयु कम-से-कम 20 वर्ष नन्दराय एवं यशोदा जी से कम होनी चाहिये।
- ↑ वसुदेव जी के पिता शूरसेन जी और नन्दजी के पिता पर्यन्य जी एक ही पिता के पुत्र थे; किन्तु देवमीढ जी की गोपपत्नी के पुत्र थे पर्जन्य जी। इस नाते–वर्ण के कारण नन्द जी वसुदेव जी को बड़ा मानते थे, यद्यपि वसुदेव जी आयु में पर्याप्त छोटे थे। इसी वर्ण-श्रेष्ठत्व के कारण लगभग बीस वर्ष छोटी रोहिणी जी को यशोदा जी ने सदा बड़ी बहिन के समान आदर दिया।
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