भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
रंगशाला में
‘बालक अभी आये नहीं।’ व्रजराज और गोपों के प्राण छटपटा रहे हैं– ‘वे आने ही वाले होंगे। यहाँ के प्रबन्धक जाकर हाथी को हटवा क्यों नहीं देते। हाथी तो द्वार पर ही है। क्या यह भी कोई मल्ल-क्रीड़ा का अंग है? क्या हाथी भीतर लाया जा रहा है? कंस के ये पर्वताकार मल्ल-क्या इनमें-से कोई हाथी से लड़ेगा?’ केवल मल्ल परस्पर देख मुस्करा रहे हैं। वे व्यायाम करने में ऐसे लगे हैं कि मानो उन्हें द्वार पर से आती हाथी की चिग्घाड़ें सुनायी ही न पड़ती हों। वे जानते हैं कि वहाँ बाहर क्या हो रहा है या होने वाला है। वाद्य बन्द हो गये हैं। कंस के संकेत से सशस्त्र प्रहरी रंगशाला में यत्र-तत्र घूम रहे हैं। वे लोगों को शान्त बैठे रहने का संकेत कर रहे हैं। कोई उठ नहीं सकता इस समय। सहसा बाहर भारी धमाका हुआ। एक क्षण को थोड़ा सा कोलाहल और फिर नीरवता छा गयी। लोगों ने देखा कि उसके महाराज कंस सिंहासन पर जैसे हताश गिर गये। कंस के शरीर से स्वेद छूटने लगा– ‘क्या दोनों ने महागज को भी मार दिया?’ क्षण–कुछ क्षण मात्र लगे होंगे। मुख्य द्वार से सखाओं के आगे चलते दोनों भाई थोड़े पद भीतर आकर खड़े हो गये। एक बार वहीं से चारों ओर देखा उन्होंने। सम्भवत: वे व्रजराज और गोपों को ढूँढ़ रहे थे। नील-पीत वसन, पटुके कटि में लपेटकर बाँध लिये गये हैं। वृक्ष पर वनमाला लहरा रही है। अलकें समेटकर कानों के पीछे कर ली गयी हैं। कन्धों पर दोनों भाई भारी स्वर्णमढ़ा गजदन्त लाठी की भाँति धरे हैं। शरीर पर स्थान-स्थान पर रक्त के बिन्दु हैं–तत्काल पड़े रक्त के बिन्दु उनके मध्य स्थान-स्थान पर गजमद के बिन्दु हैं और ये बिन्दु छोटे भाई के अंगों पर बहुत अधिक हैं। कमलदन्त विशाल लोचन। पतले अरुण अधर। बंक भ्रू, कुटिल केशपाश, भाल पर तिलक। स्वेदकण छाये हैं दोनों के मुखों पर। बड़ी भव्य शोभा-विशाल भुजदण्डों में गजदन्त लिये अदभुत मल्ल मानो आ गये हैं। ‘ये वज्रदेह!’ पहले देखा मल्लों ने और उनको दण्ड–बैठक भूल गयी– ‘इनके शरीर तो वज्र से बने लगते हैं। इनसे नियुद्ध करना पड़ेगा हमें!’ काँप गयी काया। अब तक व्यायाम से शरीर स्वेद–स्नात नहीं हुआ था–पर अब हो गया। उन्हें लगता है कि ये भुजाओं में भर लें तो पर्वत भी चूर-चूर कर देंगे, अपना शरीर तो हड्डी माँस का ही बना है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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