भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
शृगाल वासुदेव
इस ऊहापोह का कारण था। उनका पुत्र शिशुपाल चतुर्भुज उत्पन्न हुआ था। यदि साथ ही वह त्रिनयन न होता, उसी को वासुदेव मान लेते वे, किंतु जब शिशुपाल की माता ने अपने भाई के पुत्र श्रीकृष्ण की गोद में अपना पुत्र दिया, शिशुपाल का तीसरा नेत्र लुप्त हो गया और भुजाएं गिर गईं। ऋषि–मुनियों का कहना था कि भगवान वासुदेव, श्री नारायण का अवतार होने वाला है, हो चुका है। यह अवतार यदुवंश में होगा–यह भविष्यवाणी भी बहुत पहले ही हो चुकी है। लेकिन वसुदेव जी के पुत्र श्रीकृष्ण चंद्र तो चतुर्भुज वासुदेव हैं ही, करवीपुर का अधिपति शृगाल भी वासुदेव है। वह भी श्याम वर्ण है। उसके नेत्र भी बड़े बड़े हैं। भले उसके नेत्रों की अरुणिमा क्रोध की झलक देती हो, लाल नेत्र हैं उसके। उसके रथ पर भी गरुड़ध्वज रहता है। वह भी चतुर्भुज ही दीखता है। कुछ लोग कहते हैं–उसकी दो भुजाएं कृत्रिम हैं। किंतु लोगों का कहना सत्य ही होगा, यही क्यों मान लिया जाए। यह भी यदुवंशी ही तो है। मथुरा के युद्धों ने दमघोष के संदेह को बहुत कुछ दूर कर दिया था। गोमन्तक पर्वत के चक्र मौशल युद्ध में अपनी सेना के साथ वे केवल तटस्थ दर्शक बने रहे। श्रीकृष्ण के करों में घूमता उनका प्रचण्ड महाचक्र–दमघोष का संदेह दूर हो गया, किंतु एक विचार जागा उनके मन में, इन भगवान वासुदेव को शृगाल वासुदेव से मिला दिया जाए तो? शृगाल क्रोधी हैं। अभिमानी हैं। सदा युद्ध पिपासु रहता है। किसी से भी उसने मित्रता नहीं की। वह चेदि पर कभी भी आक्रमण कर सकता है। श्रीकृष्ण का चक्र मौशल युद्ध में देखा रूप, ये अजेय हैं। तब शृगाल को इनके द्वारा समाप्त क्यों न करा दिया जाए? एक कण्टक मिटेगा। जरासन्ध अपने समर्थक नरेशों के साथ भाग गया रणभूमि से। चेदिराज दमघोष अपनी सेना के साथ शांति सूचक श्वेत ध्वज अपने रथ पर उड़ाते आगे आए। समीप रथ ला खड़ा किया उन्होंने दोनों भाइयों के, और रथ से नीचे उतर कर श्रीकृष्ण बोले– "तात! तुम मुझे पहचानते हो। मैं तुम्हारी बुआ का पति हूँ। तुम मेरे प्रिय हो, स्नेह भाजन हो। मैंने जरासन्ध को रोका था कि वह तुमसे युद्ध न करे, किंतु उसने मुझे कायर कहा, मेरी निंदा की। मैंने उसका साथ त्याग दिया है। देखते ही हो कि मेरी सेना संग्राम से अलिप्त रही है, यह स्पष्ट है।" दोनों भाइयों ने अजंलि बांध कर दमघोष को प्रणाम किया। आशीर्वाद देकर वे बोले, "यह मगधराज अभी तो लौट गया है, पर फिर आएगा। यह चुप बैठने वाला नहीं है। मेरा पुत्र शिशुपाल मुझसे अधिक उसे पिता मानता है। उसी का अनुगत है। जरासन्ध ने भी उसे पुत्र के समान स्नेह दिया है। अपना महासेनापित बना रखा है। पुत्र पर मेरा वश नहीं है।" |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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