भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
उपसंहार
वज्रनाभ के साथ परीक्षित ने पर्याप्त सेवक, दासियां, अश्व, रथ, गज, गायें और अन्न, धन आदि भेजा था। मथुरा के महानगर में साथ आया समाज कितना लघु लगा। प्रत्येक मनुष्य को ही नहीं, प्रत्येक साथ आए पशु को भी एक पूरा सदन दे दिया जाए तो नगर का एक कोना कठिनाई से भरे और ऐसे सूने नगर में कोई पूरा भवन लेकर क्या वहाँ प्रेतराधन करेगा? किसी प्रकार राजभवन स्वच्छ कर लिया गया। उसी के सब कक्ष नहीं भरे। साथ आया समाज सब उसके एक भाग में ही बस गया। अश्व शाला, गज शाला, गोशाला – किंतु उन विशाल भवनों को स्वच्छ करने के श्रम का उपयोग? साथ आए पशु राजसदन के समीप रहेंगे तो प्राणियों के सामीप्य का तो कुछ आभास रहेगा। वज्रनाभ मथुरा मंडल के मूर्धाभिषिक्त राजा होकर आए, कैसी विडम्बना थी। एक प्राणिहीन प्रदेश का राजा। केवल वही सामग्री जो साथ आई थी। भवन थे, असंख्य भवन थे और टूटे फूटे नहीं थे। वे इतने अधिक, इतने विशाल न होते, शून्यता इतनी भयावनी नहीं होती। किसी जनहीन सूने नगर में रहने की अपेक्षा मरुस्थल की छोटी झोंपड़ी में रहना अधिक सुखद होता है। महाराज परीक्षित आ गए मिलने। उन्होंने वज्रनाभ से कहा – तात ! तुम माताओं की सेवा में मन लगाओ। वे बहुत दुखी हैं। कोष, सैन्य और शत्रु दमन का भार मुझ पर रहने दो। पितृव्य! आपके सम्मान्य पिता श्री अभिमन्युजी ने मुझे धनुर्वेद की शिक्षा दी है। कोश में कल उपार्जित कर लूं, किंतु इस निर्जन में उसका उपयोग? वज्रनाभ ने कहा – शत्रु के शमन से मेरा धनुष समर्थ है, किंतु यहाँ कोई शत्रु क्या लेना आएगा? कोई आवे तो मैं उसकी प्रजा बन कर रहने में प्रसन्न हूँ। सेना का क्या होगा? यहाँ किसे सैनिक बनाऊंगा? वज्रनाभ कह रहे थे - चक्रवर्ती सम्राट धर्मराज ने मेरा इस क्षेत्र के अधिपति पद पर अभिषेक किया। यह मेरे पूर्वजों की भूमि है। उस अभिषेक की मर्यादा, इस भूमि का मोह मुझे बांधे है। अन्यथा यहाँ से तत्काल चला गया होता। वन में भील पल्ली के पार्श्व में भी रहता तो मनुष्य, वनपशु तो दीखते। इस प्राणिहीन प्रदेश में राजा होने का क्या अर्थ? इन साथ आए सेवकों, पशुओं की संतति से राज्य में प्रजा, पशु भी स्थापित करने हैं तो वे मेरे जीवनकाल में ही हो पाएंगे? मैं इस निर्जन में कितने दिन रहूंगा और जब निर्जन में ही रहना है, तप क्यों न किया जाए? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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