भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
गज–वध
कुवलयापीड असाधारण ऊँचा था। इतना बड़ा हाथी देशमें दूसरा नहीं था। दस सहस्त्र हाथियों का बल उस में बताया जाता था। कंस ने मगधराज जरासन्ध से इसे पुरस्कार में–दहेज में कहना ठीक होगा–पाया था। भीमासुर के पास ऐरावत के कुल में उत्पन्न हुए चार दाँत वाले श्वेत गज थे; किन्तु उनमें भी इतना विशाल कोई नहीं था। कुवलयापीड को पालना भी साहस का काम था। वह वाहन कम ही बनता था। मनुष्य की आकृति से उसे चिढ़ थी। उसके गण्डस्थलों से मद झरता रहता था। प्राय: मतवाला रहता था वह। वह योधा गज था–युद्ध के काम का गज। कंस को कभी उपयोग में वह नहीं आया; किन्तु इतना विशाल, इतना शक्तिशाली गज उसकी सेना में है, यही पर्याप्त था आतंक बनाए रखने के लिए। कुवलयापीड केवल अपने हस्तिप और महाराज कंस को ही समीप आने देता था। उसके आठों पाद-रक्षक भी उससे सावधान ही रहा करते थे। आज उसका श्रृंगार हुआ था। उसका मस्तक सिन्दूर से चर्चित किया गया था। उसकी सूँड पर कई रंगों से पत्रावली बनी थी। उस पर स्वर्णिम झूल डाला गया था; किन्तु होदा नहीं कसा था। उसे डटकर सुरापान कराया गया था। हाथी के नेत्र लाल-लाल हो रहे थे। लाल-लाल नेत्र थे उसके महावत के भी। उसने भी सुरा पी रखी थी। ‘द्वार पर इस प्रकार यह गज!’ श्रीकृष्णचन्द्र ने देखा। सखाओं के साथ तनिक रुक गये। पटुका कटि में लपेट लिया। घुंघराली अलकों को समेटनेलगे। छोटे भाई की ओर देखकर बड़े भाई ने भी कटि में पटुका लपेटा। ‘अम्बष्ठ! अरे ओ अम्बष्ठ!’ मेघ गम्भीर वाणी ने ललकारा– ‘तूने रंगशाला का द्वार क्यों रोक रखा है? अपना हाथी अविलम्ब हटा यहाँ से। हम लोग भीतर जायेंगे।’ अम्बष्ठ!’ इस सम्बोधन से हस्तिप जल उठा। उसे उसके महाराजाधिराज भी मित्र की भाँति मानते हैं। उसे ‘महामात्र’ कहते हैं और यह गाँव से आया उद्धत बालक उसे अम्बष्ठ कहकर इस प्रकार डाँट रहा है! उसे–महाराज कंस की गजसेना के प्रधान महामात्र को? ‘तुझे कुछ दीखता नहीं और बहिरा हो गया है तू?’ श्रीकृष्णचन्द्र ने कठोर स्वर में फिर डाँटा– ‘इस हाथी को झटपट हटा ले, नहीं तो हाथीके साथ तुझे भी यमराज के घर भेज दूँगा।’ हस्तिप के पैर हाथी के नेत्रों के पास की ग्रन्थि को अँगूठे से दबाने लगे। हाथी हूल दिया उसने श्रीकृष्ण के ऊपर। लेकिन हाथी के पाद-रक्षक एक ओर हट गये थे। उनका काम सशस्त्र लोगों के आक्रमण से हाथी के पैरों को आहत होने से बचाना है। इन बालकों में किसी के पास सशस्त्र नहीं है। उन्होंनें सुना है कि कल धनुषशाला में इन दोनों भाइयों ने पूरी सेना मार दी है। पाद-रक्षकों को मरने की कोई उतावली नहीं है। हाथी पर संकट न आवे, तब तक उन्हें तटस्थ रहना चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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