प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमियों की अभिलाषाएँकहते हैं- तृन कीजै रावरेई गोकुल नागर कौ।। ओड़छे के व्यास बाबा भी कुछ ऐसा ही अभिलाष राग अलाप रहे हैं। उनके इस संगीत में उत्कण्ठा और उन्मत्तता का कैसा मधुर मिलन हुआ है- ऐसौ कबब करिहौ मन मेरो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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