प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमियों का मत मज़हबहाँ, तो प्रेमी की नजर में उसकी बदनामी भी नेकनामी ही है। मुबारक हो ऐसी बदनामी। किसी भूले भटके को प्रेम का पंथ तो दिखा देती है। बदनामी के उस कूचे में क्या तो मुगलानी और क्या हिंदुवानी! परमहंस मौलाना रूम ने दिल खोलकर कहा है कि मेरे नजदीक प्रेमी का दरजा बहुत ऊँचा है। प्रेमी को न तो मक्के मदी ने जाने की ही जरूरत है और न हज्ज करने की ही आवश्यकता है। नमाज पढ़ना भी उसे ऐसा लाजिमी नहीं है जो उस प्रियतम की प्यारी सूरत पर कुरबान हो चुका है, जिसकी सुंदरता पर सारी दुनिया पतंगे की तरह जान दे रही है। वह तुम्हारे मक्के और नमाज से बहुत आगे निकल गया है। प्रेम की मस्ती में झुकना ही उसकी नमाज है। उसका प्रेमधर्म सब धर्मों से परे हैं। अवधूत मौलाना रूम निस्संदेह एक ऊँचे प्रेमी थे। कहते हैंकि उसकी अर्थी के साथ मुसल्मान, यहूदी और ईसाई सभी गये थे। यहूदी अपने धर्म ग्रंथ ‘तौरेत’ का पवित्र पाठ करते जाते थे और ईसाई पीछे पीछे ‘इंजील’ सुनाते जाते थे। यहूदियों से पूछा गया कि मौलाना रूम से तुम्हारा क्या संबंध था, तो उन्होंने मुसल्मानों से कहा कि तुम्हारा वह मुहम्मद था तो हमारा मूसा था और ईसाइयों ने यह जवाब दिया कि यदि वह तुम्हारा मुहम्मद और इनका मूसा था, तो हमारा वह ईसा था।[1]उस खुदमस्त मौलाना को हम प्रेम का आबेहयात क्यों ने कहें, जो उन भाँति भाँति के नये पुराने मजहबी प्यालों से भरा हुआ था। मत मजहब हो तो भाई, इन प्रेम मतवालों के जैसा हो, नहीं तो इस दुनिया में लामजहब, बिना धर्म के रहना ही अच्छा ह। और सच पूछो तो हम सब हैं भी तब तक धर्मविहीन, जब तक समस्त धर्मों में व्याप्त प्रेम रहस्य का हमें साक्षात्कार नहीं हो गया। प्रेम का भेद हम समझ जायँ, तो फिर संसार भर के धर्मों में जानने को रह ही क्या जाय? निस्संदेह ‘अस्ति’ और ‘नास्ति’ में प्रेम का भेद छिपा हुआ है, हर चीज में इश्क का ही मर्म समाया हुआ है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मौलाना रूम और उनका काव्य
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