प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमियों का मत मज़हबबुतपरस्ती को तो इसलाम नहीं कहते हैं। बदनामी कैसी होगी, उसकी कोई चिन्ता नहीं। मस्त सरमद कह गया है- सरमद कि बकूए इश्क बदनाम शुजी, अर्थात्, सरमद इश्क के कूचे में- प्रेम पंथ में पड़कर बदनाम हो गया, यहूदी दीन (पंथ) छोड़कर इसलाम की ओर आया और फिर इसलाम के खुदा और रसूल से मुँह मोड़कर राम और लक्ष्मण के भक्तों में जा मिला।[1] धर्म सामञ्जस्य का साक्षात्कार प्रेमी सरमद को यहीं हुआ। इसी गली में उस मस्त फकीर को- प्रेमी के हृदय के भीतर ही मंदिर और मसजिद के नक्शे खिंचे रहते हैं। सारी खुदाई उसके सीने के अंदर ही भरी रहती है- शेखो बरहमन दैरो हरममें |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पंडित पद्यसिंह शर्मा
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज