प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम में अनन्यताजानकी जीवन की बलि जैहौं। जिस प्रभु का अपने गो दास मान लिया, जिसके हम सब तरह से गुलाम हो चुके, उसी एक को अब जानते और उसी एक को मानते हैं। वह चाहे जैसा हो, प्रेमी के लिए तो परमेश्वर ही है। उसके अवगुण भी गुण ही प्रतीत होते हैं। विष्णु भगवान् सद्गुणों के कैसे निधान हैं कैसे त्रिलोकैक सुंदर हैं और कैसे अनुपम अद्वितीय हैं, पर अनन्योपासिका पार्वती के हृदय पटल पर तो श्मशानवासी दिगंबर शिव का ही चित्र खचित है। तपस्या की मूर्ति भगवती शैलजा पर यह दृढ़ प्रतिज्ञा है कि- माना कि शंकर अवगुणों के आगार हैं और विष्णु सर्व सद्गुणों के सागर हैं, पर जिसमें जिसका मन अनन्यभाव से रम जाता है, उसका सी से काम है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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