प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 53

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम में तन्मयता

महाकवि देव ने मोहन के मुग्ध मन को राधामय और राधा के प्रेमोन्मत मन को मोहनमय अंकित किया है। कवि ने दोनों का पारस्परिक प्रेम पराकाष्ठा को पहुँचाकर तन्मयता में लीन कर दिया है। दोनों एक दूसरे पर रीझते हैं; पुलकित होते हैं और हँसते हैं। दोनों आहें भरते हैं, आँखें डबडबाते हैं और विरह में ‘हा दई, हा दई!!’ पुकारा करतरे है। कभी चौंक पड़ते हैं, कभी चकित हो जाते हैं, कभी उचक पड़ते हैं, कभी जके से रह जाते हैं और कभी जो मन में आया वही बकने लगते हैं। दोनों ही एक दूसरे के रूप और गुणों का बखान करते फिरते हैं। वे दोनों घर में तो एक क्षण भीनहीं ठहरते। दोनों प्रेमी। प्रेम की कैसी नयी नयी रीति निकालते रहते हैं। प्रेम में दोनों ही तन्मय हो रहे हैं। मोहन का मन राधामय और राधा का मन मोहनमय हो गया है। क्या ही ऊँची तल्लीनता है-

रीझि रीझि, रहसि रहसि, हँसि हँसि उठैं,
साँसें भरि, आँसू भरि, कहत दई दई;
चौंकि चौंकि चकि चकि, उचकि उचकि ‘देव’,
जाकि जाकि, बकि बकि परत बई बई।
दुहुन कौ रूप गुन दोऊ बरनत फिरैं,
घर न थिरात, रीति नेह की नई नई;
मोहि मोहि मोहन कौ मन भयो राधिकामै,
राधा मन मोहि मोहि मोहनमई मई।।

प्रेम तन्मयता का एक प्रसंग याद आ गया है। वेदान्तपरांगत उद्धव प्रेम रंगीली गोपिकाओं को योग शिक्षा देने आये हैं। पर वे गँवार गोपियाँ गुरु महाराज से दीक्षा नहीं ले रही हैं। कहती हैं, न तो हमें यम नियम आदि साधने की ही आवश्यकता है और न प्राणायाम, ध्यान धारणा वा समाधिका ही। वियोगिनी होती हुई भी आज हम वियोगिनी नहीं है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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