प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम में तन्मयताप्राण क्यों इतने प्यारे हैं? इसलिए कि वे प्रियतम हैं और प्रियतम क्यों इतना प्यारा है? क्योंकि वह प्राणमय है। कैसा ऊँचा तादात्म्य है। क्षमा करें अद्वैत वेदान्तवादी, उनके ‘सोऽहम्’ आदि महावाक्यों से हमें तो हरिश्चंद्र की यह सूक्ति ही ऊँची ऊँची है। उर्दू के सुप्रसिद्ध कवि ‘जिगर’ भी एक शेर में तन्मयता की कुछ ऐस, ही तसबीर कींच रहे हैं। उन्हें अभी अपने बेहोशी में कुछ ऐसी ही सूझी है। वह भी प्यारे की याद और अपने दिल की पहचान में आज असमर्थ हैं। कहते हैं- कुछ खटकता तो है पहलू में मेरे रह- रहकर, रह रहकर किसी चीज के खटकने भर का खयाल है, यह नहीं बताया जा सकता कि वह क्या खटक रहा है- प्रियतम की याद है या प्रेमी का दिल है। तन्मयता की बेहोशी जो है। गालिब ने भी क्या अच्छा कहा है- हम वहाँ हैं, जहाँ से हमको भी सबने कुछ कहा है, पर- कान्ह भये प्रानमय, प्रान भये कान्हमय, हरिश्चंद्र के इन सुनहले शब्दों में प्रेम तन्मयता की कुछ विलक्षण ही प्रभा दिखायी देती है। यह बात ही कुछ और है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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