प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमीपरै प्रेम के झेल पिउ सहुँ धनि मुख सो करै। बात वही है। सरफरोशी के निशाने पर ही सब तीरंदाजों की नजर अटकी हुई है। एक ही सवाल पर सबने जोर दिया है। यदि प्रेमी होना चाहते हो, यदि अमर जीवन चाहते हो, तो अपने प्रेमास्पद के चरणों पर अपने प्राणों की तुच्छ पुष्पांजलि चढ़ा दो। खुशी खुशी अब भी कह दो- दिखलाके सरफरोशी तोड़ेंगे हुक्म सारी। अगर आशिक होने का शौक रखते हो, तो प्रेम के मैदान पर अपने सरके गेंद को उछाला करो। आदि से अंत तक प्रेमी के जीवन में आत्म बलिदान ही व्यापक रूप से मिलेगा। इब्तिदा बी जानिसारी और इन्तिहा भी जाँनिसारी! प्रीति कितनी मँहगी चीज है। कौन खरीदार है इसका सरके मोल बिकती है, साहब, करके। है कोई खरा गाहक? कहा कोउ प्रेम बिसाहन जाय! लाखों करोड़ों साधकों में ऐसे ऊँचे प्रेमी कहीं एक दो मिलेंगे। ऐसे ही प्रमानुरागियों पर भगवान् का सहज सनेह है। उन अनन्य भक्तों के योग क्षेम का भगवान् को सदा ध्यान रहता है।यह कहते कहते आप अघाते भी नहीं- हम भक्तन के, भक्त हमारे। पर किन भक्तों के आप अनुगामी हैं? उन्हीं के जिन पर उस मस्त कवि ने यह कहा है कि- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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