प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 35

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेमी

देखौ करनी कमल की, कीनों जलसों हेत।
प्रान तज्यौ, प्रेम न तज्यौ, सूख्यो सरहि समेत।।
मीन वियोग न सहि सकै, नीर न पूँछै बात।
देखि जु तू ताकी गतिहि, रति न घटै तन जात।।
प्रीति परेवाकी गनौ, चाह चढ़त आकास।
तहँ चढ़ि तीयजु देखतहि परत छाँड़ि उर स्वास।।
सुमरि सनेह कुरंग कौ स्रवननि राच्यौ राग।
धरि न सकत पग पछमनो, सर सनमुख उर लाग।।

ये सब के सब त्याग की कठिन कसौटी पर खरे उचकने वासे प्रेमी हैं। जिसे कुछ सीखना हो, इन उस्तादों से सीख ले, इन गुरुदेवों से मंत्र दीक्षा ग्रहण कर ले। इन्होंने भी जो कुछ सीखा है, वह किसी के होकर ही सीखा है। लगन तो बस इनकी है। इन्होंने अपने को प्रेमदेव के श्रीचरणों पर उत्सर्ग करके ही प्रेमी का दुर्लभ पद पाया है। कौन बतला सकता है कि कमल का सरोवर के साथ क्या संबंध है? मीन के प्रेम को नीर से कौन पृथक् कर सकता है? कपोत व्रत की तुलना किससे करोगे? प्रेम शूर कुरंग के आत्मार्पण का पता किस समझदार को है? ये सभी किसी न किसी के हो चुके हैं। इसी से इनकी पवित्र स्मृति को सहृदय जन सदा से अपने मनोमंदिर में पूजते चले आते हैं। ये बड़े ऊँचे दरजे के त्यागी हैं। अपना सर्वस्व तृणवत् त्याग चुके हैं। इनका इनके पास अब है ही क्या? अपनी हस्ती को इन्होंने खाक में मिला दिया है। त्यागमयी दीनता के अवलम्ब से ही हम अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं, इसमें संदेह नहीं। सुकवि मीर कहते हैं-

हम इज्ज़से पहुँचे हैं मक़सद की मंजिल को।
वह खाक में मिल जावे जो उससे मिला चाहे,

जो उत्सर्ग करना नहीं जानता, उसे प्रेम करने का कोई अधिकार नहीं। कहा भी है-

Whosoever is not ready to suffer all and to stand resigned to the will of his beloved is not worthy to be called a lover.
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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