प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमीदेखौ करनी कमल की, कीनों जलसों हेत। ये सब के सब त्याग की कठिन कसौटी पर खरे उचकने वासे प्रेमी हैं। जिसे कुछ सीखना हो, इन उस्तादों से सीख ले, इन गुरुदेवों से मंत्र दीक्षा ग्रहण कर ले। इन्होंने भी जो कुछ सीखा है, वह किसी के होकर ही सीखा है। लगन तो बस इनकी है। इन्होंने अपने को प्रेमदेव के श्रीचरणों पर उत्सर्ग करके ही प्रेमी का दुर्लभ पद पाया है। कौन बतला सकता है कि कमल का सरोवर के साथ क्या संबंध है? मीन के प्रेम को नीर से कौन पृथक् कर सकता है? कपोत व्रत की तुलना किससे करोगे? प्रेम शूर कुरंग के आत्मार्पण का पता किस समझदार को है? ये सभी किसी न किसी के हो चुके हैं। इसी से इनकी पवित्र स्मृति को सहृदय जन सदा से अपने मनोमंदिर में पूजते चले आते हैं। ये बड़े ऊँचे दरजे के त्यागी हैं। अपना सर्वस्व तृणवत् त्याग चुके हैं। इनका इनके पास अब है ही क्या? अपनी हस्ती को इन्होंने खाक में मिला दिया है। त्यागमयी दीनता के अवलम्ब से ही हम अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं, इसमें संदेह नहीं। सुकवि मीर कहते हैं- हम इज्ज़से पहुँचे हैं मक़सद की मंजिल को। जो उत्सर्ग करना नहीं जानता, उसे प्रेम करने का कोई अधिकार नहीं। कहा भी है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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