प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमीसब बाजे हिरदै बजैं, प्रेम पखावज तार। अपने प्रेमास्पद के पैरों पर सर्वस्व न्योछावर कर देने वाला हो ‘प्रेमी’ कहाने के योग्य है। सच बात तो यह है कि सर्वस्व त्यागी ही परम प्रेमी है। उसका प्रेम प्रेम के ही निमित्त होता है। वह इतना ही कह सकता है कि ‘मैं प्रेम करता हूँ, किसलिए? क्योंकि प्रेम करना उसका स्वभाव है। इसके अतिरिक्त वह और कुछ नहीं जानता।’ पर ऐसी दिव्य भावना उसी के हृदय में उदय होगी, जिसने अपना सर्वस्व अपने प्रेमास्पद के चरणों पर चढ़ा दिया है, जिसकी हस्ती अपने प्यारे की मर्जी में समा गयी है। वह सिर्फ इतना ही कहना जानता है कि- जीता रखे तू हमको या धड़ से सर उतारे, इस तरह की ‘वाह वा’ का आनन्द त्यागी ही ले सकता है। निस्संदेह जो त्यागी नहीं, वह प्रेमी हो ही नहीं सकता। विश्वास न हो, तो इन प्रेमियों को त्याग की कसौटी पर कस क्यों नहीं लेते? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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