प्रेम योग -वियोगी हरि
स्वदेश प्रेमसारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा। क्या सचमुच ही 'सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा' है? शक ही क्या। अच्छा, आप ही कहें- कहाँ है कोई ऐसा स्थान, जगत में जैसा हिंदुस्तान? भले ही समझदार लोग इसे हमारा भावावेश कहें- उनके कहने मकी हमें कोई पर्वा नहीं। प्रेम में भावुकता न हो, यह कैसे हो सकता है? भावुकता कर्म साधनों में कैसे बाधा पहुँचायगी, यह हमारी समझ में नहीं आता। आज संसार का सर्वश्रेष्ठ पुरुष गांधी क्या भावुक नहीं है? उसकी भावुकता में ही तो उसका महात्मापन है। वह डेढ़ पसली का गांधी आज अपनी भावुकता से ही तो हमारे हृदय में घोर प्रलय मचा रहा है। कुछ कहो, भाई, हम तो यही गायंगे और फिर गायंगे। ईश प्रेम वा विश्व प्रेम का संगीत हमारी इसी भावना में विद्यमान है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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