प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 336

प्रेम योग -वियोगी हरि

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स्वदेश प्रेम

सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा।
हम बुलबुलें हैं उसकी, वह दोस्ताँ हमारा।।

क्या सचमुच ही 'सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा' है? शक ही क्या। अच्छा, आप ही कहें-

कहाँ है कोई ऐसा स्थान, जगत में जैसा हिंदुस्तान?
हमारा प्यारा हिंदुस्तान, जगत से न्यारा हिंदुस्तान।
कि जिसको प्रेमी श्रीभगवान्, करे नित नूतन प्रेम प्रदान।
अतः कर बड़ा प्रेम अभिमान, प्रेम की रखता हो जो शान।
पड़ी हो जिसे प्रेम की बान।
कहाँ है कोई ऐसा स्थान, जगत में जैसा हिंदुस्तान?
हमारा प्यारा हिंदुस्तान, जगत से न्यारा हिंदुस्तान।

भले ही समझदार लोग इसे हमारा भावावेश कहें- उनके कहने मकी हमें कोई पर्वा नहीं। प्रेम में भावुकता न हो, यह कैसे हो सकता है? भावुकता कर्म साधनों में कैसे बाधा पहुँचायगी, यह हमारी समझ में नहीं आता। आज संसार का सर्वश्रेष्ठ पुरुष गांधी क्या भावुक नहीं है? उसकी भावुकता में ही तो उसका महात्मापन है। वह डेढ़ पसली का गांधी आज अपनी भावुकता से ही तो हमारे हृदय में घोर प्रलय मचा रहा है। कुछ कहो, भाई, हम तो यही गायंगे और फिर गायंगे। ईश प्रेम वा विश्व प्रेम का संगीत हमारी इसी भावना में विद्यमान है-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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