प्रेम योग -वियोगी हरि
स्वदेश प्रेमजिसकी रज में लोट लोटकर बड़े हुए हैं; जिसके दिल में देश के लिए दर्द नहीं, वह मुर्दा है। व दिल जिन्दादिल कैसे कहा जा सकता है? जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है। जिसने हुब्बे वतन (स्वदेश प्रेम) की मस्ती में झूम झूमकर यह नहीं गा लिया कि- गुँचे हमारे दिल के इस बाग में खिलेंगे, उस मुर्दा दिल को प्रेम रस की मिठास कहाँ नसीब हो सकती है? अपने देश की पवित्र खाक पर जिसने अपने जीवन की प्यारी प्यारी घड़ियाँ नहीं चढ़ा दीं, वह समझ लो, मरते दम तक प्रेम रस का प्यासा ही रहा। न वह विश्व प्रेम ही पा सकेगा और न ईश्वर प्रेम ही साध सकेगा। वह मस्त स्वामी राम, जो अपना दिल विश्व प्रेम के गाढ़े रंग में रंग चुका था, देखो, भारत भक्ति की गंगा में डुबकियाँ लगाता हुआ क्या कह रहा है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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