प्रेम योग -वियोगी हरि
दीनों पर प्रेमश्रमी किन्तु निर्धन मजूर की अति छोटी अभिलाषा में;
दीनबंधु का निवास स्थान दीन हृदय है। दीन हृदय ही मंदिर है; दीन हृदय ही मसजिद है, दीन हृदय ही गिरजा है। दीन दुर्बल का दिल दुखाना भगवान् का मंदिर ढहाना है। दीन को सताना सबसे भारी धर्म विद्रोह है। दीन की आह समस्त धर्म कर्मों को भस्मसात् कर देने वाली है। संतवर मलूकदास ने कहा है- दुखिया जनि कोइ दूखिये, दुखिये अति दुख होय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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