प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 315

प्रेम योग -वियोगी हरि

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अव्यक्त प्रेम

My beloved is ever in my heart.
That is why I see him everywhere.
He is in the pupils of my eyes;
That is why I see him, everywhere;

अर्थात्-

जीवन धन मम प्रान पियारो सदा बसतु हिय मेरे,
जहाँ बिलोकैं, ताकैं ताको, कहा दूरि कहा नेरे।
आँखिन की पुतरिन में सोई सदा रहै छबि घेरे,
जहाँ बिलोकैं ताकैं ताको, कहा दूरी कहा नेरे।। - कृष्ण बिहारी मिश्र

अपने चित्त को चुराने वाले का ध्यान तुम भी एक चोर की ही तरह दिल के भीतर किया करो। चोर की चोर के ही साथ बना करती है। जैसे के साथ तैसा ही बनना पड़ता है। कविवर विहारी का एक दोहा है-

करौ कुबत जगु, कुटिलता तजौं न, दीनदयाल।
दुखी होहुगे सरल हिय बसत त्रिभंगी लाल।।

संसार निन्दा करता है तो किया करे, पर मैं अपनी कुटिलता तो न छोड़ूँगा। अपने हृदय को सरल न बनाऊंगा, क्योंकि हे त्रिभंगीलाल! तुम सरल (सीधे) हृदय में बसते हुए कष्ट पाओगे। टेढ़ी वस्तु सीधी वस्तु के भीतर कैसे रह सकती है? सीधे मियान में कहीं टेढ़ी तलवार रह सकती है? मैं सीधा हो गया तो तीन टेढ़वाले तुम मुझमें कैसे बसोगे? इससे मैं अब कुटिल ही अच्छा! हाँ, तो अपनी प्रेम साधना का या अपने प्यारे के ध्यान का कभी किसी को पता भी न चलने दो, यहाँ की बात जाहिर कर दो, यहाँ के पट खोल दो, पर वहाँ का सब कुछ गुप्त ही रहने दो, वहाँ के पट बंद ही किये रहो। यह दूसरी बात है कि तुम्हारी ये लाचार आँखें किसी के आगे वहाँ का कभी कोई भेद खोलकर रख दें।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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