प्रेम योग -वियोगी हरि
अव्यक्त प्रेमMy beloved is ever in my heart. अर्थात्- जीवन धन मम प्रान पियारो सदा बसतु हिय मेरे, अपने चित्त को चुराने वाले का ध्यान तुम भी एक चोर की ही तरह दिल के भीतर किया करो। चोर की चोर के ही साथ बना करती है। जैसे के साथ तैसा ही बनना पड़ता है। कविवर विहारी का एक दोहा है- करौ कुबत जगु, कुटिलता तजौं न, दीनदयाल। संसार निन्दा करता है तो किया करे, पर मैं अपनी कुटिलता तो न छोड़ूँगा। अपने हृदय को सरल न बनाऊंगा, क्योंकि हे त्रिभंगीलाल! तुम सरल (सीधे) हृदय में बसते हुए कष्ट पाओगे। टेढ़ी वस्तु सीधी वस्तु के भीतर कैसे रह सकती है? सीधे मियान में कहीं टेढ़ी तलवार रह सकती है? मैं सीधा हो गया तो तीन टेढ़वाले तुम मुझमें कैसे बसोगे? इससे मैं अब कुटिल ही अच्छा! हाँ, तो अपनी प्रेम साधना का या अपने प्यारे के ध्यान का कभी किसी को पता भी न चलने दो, यहाँ की बात जाहिर कर दो, यहाँ के पट खोल दो, पर वहाँ का सब कुछ गुप्त ही रहने दो, वहाँ के पट बंद ही किये रहो। यह दूसरी बात है कि तुम्हारी ये लाचार आँखें किसी के आगे वहाँ का कभी कोई भेद खोलकर रख दें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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