प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 311

प्रेम योग -वियोगी हरि

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अव्यक्त प्रेम

अर्थात्, अव्यक्त प्रेम ही पवित्र होता है। जिसके जिगर में कोई कसक है वह दुनिया में गली गली चिल्लाता नहीं फिरता। जहाँ तहाँ पुकारते तो वे ही फिरा करते हैं, जिनके दिल में प्रेम की वह रसभरी हूक नहीं उठा करती। ऐसे बने हुए प्रेमियों को प्रेमदेव का दर्शन कैसे हो सकता है? महात्मा दादू दयाल कहते हैं-

अंदर पीर न ऊभरै, बाहर करै पुकार।
‘दादू’ सो क्यों करि लहै, साहिब का दीदार।।

किसी को यह सुनाने से क्या लाभ कि मैं तुम्हें चाहता हूँ, तुम पर मेरा प्रेम है? सच्चे प्रेमियों को ऐसी विज्ञापन बाजी से क्या मिलेगा? तुम्हारा यदि किसी पर प्रेम है, तो उसे अपनी हृदय वाटिका में ही अंकुरित पल्लवित प्रफुल्लित और परिफलित होने दो। जितना ही तुम अपने प्रिय को छिपाओग, उतना ही वह प्रगल्भ और पवित्र होता जायेगा। बाहर का दरवाजा बंद करके तुम तो भीतर का द्वार खोल दो। तुम्हारा प्यारा तुम्हारे प्रेम को जानता हो तो अच्छा, और उससे बेखबर हो तो भी अच्छा। तुम्हारे बाहर के शोरगुल को वह कभी पसंद न करेगा। तुम तो दिल का दरवाजा खोलकर बेखबर हो बैठ जाओ। तुम्हारा प्यारा राम जरूर तुम्हें मिलेगा-

सुमिरन सुरत लगाइकै, मुखतें कछू न बोल।
बाहर के पट देइकै, अंतर के पट खोल।। - कबीर

प्रीति का ढिंढोरा पीटने से कोई लाभ?

जो तेरे घट प्रेम है, तौ कहि कहि न सुनाव।
अंतरजामी जानि हैं, अंतरगत का भाव।। -मलूकदास

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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