प्रेम योग -वियोगी हरि
सख्यतनिक ध्यान तो करो- बिभ्रद्वेणुं जठरपटयोः श्रृङ्वेत्रे च कक्षे कमर पर कसे हुए पीताम्बर में बाँसुरी खों से, बायीं बगल में सींग और दाहिनी बगल में बेंत दबाये, बायें हाथ में माखन भात का कौर और अंगुलियों के बीच में टेंटी के फलों को लिए नन्दनन्दन कृष्णचंद्र यज्ञभाग के भोक्ता होने पर भी, बाल सखाओं के बीच में बैठे स्वयं हँसते और उन्हें हँसाते हुए भोजन कर रहे हैं। और, इस सहभोज लीला का स्वर्गलोक के देवगण विस्मय पूर्वक देख रहे हैं। धन्य व्रजवासियों, धन्य! ब्रज बासी पटतर कोउ नाहिं। कौन कह सकता है कि इस सुंदर सख्य रस में कितना माधुर्य भरा हुआ है? इस रस को पीते ही भक्त ईश्वर की ईश्वरता को भूलकर उसके साथ ढिठाई का व्यवहार करने लग जाता है। प्रभु को मित्र कहकर पुकारने लगता है। कविवर रवीन्द्र ने क्या अच्छा कहा है- Drunk with the joy of singings, I forget my self and call the friend, who art my Lord! नाथ! तेरे संगीत का आनन्द रस पीकर मैं अपने आपको भूल जाता हूँ, और मुझे, जो मेरा स्वामी है 'मित्र' कहकर पुकारने लगता हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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