प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 288

प्रेम योग -वियोगी हरि

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सख्य

तनिक ध्यान तो करो-

बिभ्रद्वेणुं जठरपटयोः श्रृङ्वेत्रे च कक्षे
वामे पाणौ मसृणकवलं तत्फलान्युंगुलीषु।
तिष्ठन्मध्ये स्वपरसुहृदो हासयन्नर्ममिः स्वैः
स्वर्गे लोके मिषति बुभुजे यज्ञभुग्बालकेलिः।।

कमर पर कसे हुए पीताम्बर में बाँसुरी खों से, बायीं बगल में सींग और दाहिनी बगल में बेंत दबाये, बायें हाथ में माखन भात का कौर और अंगुलियों के बीच में टेंटी के फलों को लिए नन्दनन्दन कृष्णचंद्र यज्ञभाग के भोक्ता होने पर भी, बाल सखाओं के बीच में बैठे स्वयं हँसते और उन्हें हँसाते हुए भोजन कर रहे हैं। और, इस सहभोज लीला का स्वर्गलोक के देवगण विस्मय पूर्वक देख रहे हैं। धन्य व्रजवासियों, धन्य!

ब्रज बासी पटतर कोउ नाहिं।
ब्रह्म सनक सिव ध्यान न पावत, इनकी जूठनि लै लै खाहिं।।
हलधर कह्यौ, छाक जेवतं सँगत मीठो लागत सराहत जाहिं।
'सूरदास' प्रभु जो बिस्वंभर, सो ग्वालन के कौर अघाहिं।।

कौन कह सकता है कि इस सुंदर सख्य रस में कितना माधुर्य भरा हुआ है? इस रस को पीते ही भक्त ईश्वर की ईश्वरता को भूलकर उसके साथ ढिठाई का व्यवहार करने लग जाता है। प्रभु को मित्र कहकर पुकारने लगता है। कविवर रवीन्द्र ने क्या अच्छा कहा है-

Drunk with the joy of singings, I forget my self and call the friend, who art my Lord!

नाथ! तेरे संगीत का आनन्द रस पीकर मैं अपने आपको भूल जाता हूँ, और मुझे, जो मेरा स्वामी है 'मित्र' कहकर पुकारने लगता हूँ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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