प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 284

प्रेम योग -वियोगी हरि

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सख्य

मुझे तुम कोई और सखा तो समझ न लेना, मैं श्रीदामा हूँ, श्रीदामा समझे! मुझसे तुम पार न, पाओगे। गेंद की गेंद फेंक दी और ऊपर से आप गरम पड़ते हैं। बातों बातों झगड़ा बहुत बढ़ गया। कृष्ण ने श्रीदामा को एक के बदले तो गेंदें तक देनी चाहीं, पर वह न माना। अपनी ही गेंद लेने पर अड़ गया। आखिर यह हुआ कि-

रिस करि लीनी फेंट छुड़ाई।
सखा सबै देखत हैं ठाढ़े, आपुन चढ़ै कदँब पर धाई।।
तारी दै दै हँसत सबै मिलि, स्याम गये तुम भाजि डराई।।
रोवत चल्यौ श्रीदामा धरकों, जसुमति आगे कहिहौं जाई।।

यह बुरी बीती। मैया से इस दुष्ट ने अब की शिकायत! श्रीदामा! भैया श्रीदामा! लौट आओ, मैं तुम्हारी वहीं गेंद उठाये, लाता हूँ। मैया से न कहो, श्रीदामा!

‘सखा, सखा!’ कहि स्याम पुकारय्यौ, गेंद आपुनी लेहु न आई।
‘सूरस्याम’ पीताम्बर काछे, कूदि परे दह में महराई।।

लो, श्रीदामा, अब तो हो गयी तुम्हारे मन की! कृष्ण को कालीदह में कुदाकर ही माने! अब क्यों घबराते हो? तुमने न, एक गेंदे के लिए अपने प्यारे गोपाल को अथाह यमुना में कुदा दिया। यह दुखद समाचार फैलते ही हाहाकार मच गया। यशोदा और नन्द मूर्च्छित हो गिर पड़े। पर बलराम ने धैर्य न छोड़ा। सबको आप खड़े खड़े सान्त्वना देते रहे।

आश्चर्य! यह क्या! कालीदह से इस महाविकराल सर्प को नाथे हुए यह कौन ऊपर आ रहा है? अरे, यह तो हमारे प्यारे कृष्ण हैं। सहस्रों कमल पुष्प भी यह उसी सर्प के मस्तक पर लाद लाये हैं। श्रीदामा सखा की गेंद भी ढूँढ़ ढाँढकर ला रहे हैं! धन्य यह नटवर वेश!

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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