प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्य और सूरदासबरु ए गोधन हरौ कंस सब, मोहि बंदि लै मेलौ। पर वहाँ ऐसा कोई भी हितू न निकला। राम कृष्ण ने जाने की तैयारी कर दी। माता से विदा लेने आये। वात्सल्य नदी का बांध टूट गया। दोनों प्यारे बच्चों को यशोदा ने छाती से लिपटा लिया। बेचारी यह क्या जाने कि विदा करते समय क्या कहना होता है। माता की ममता कैसी होती है, इसका पता चंचल कृष्ण को आज ही चला। किसी तरह धीरज बाँधकर यशोदा रोती हुई बोली- मोहन, मेरी इतनी चित धरिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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