प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्यमहाकवि शेक्सपियर ने लिखा है- यहाँ एक प्रसंग याद आ गया है। महारानी कौशल्या ने जब से रामचंद्र चित्रकुच से चले गये तब से उनका कोई कुशल समाचार नहीं पाया। आप अपनी एक सखी से चिन्तित हो कह रही हैं कि न जाने आजकल मेरी आँखों को पुतली प्यारी सीता और हृदय दुलारे राम और लक्ष्मण किस वन में भूखे प्यासे मारे मारे फिरते होंगे! शायद ही समय पर उन्हें कन्द मूल या फल फूल मिलते हों- आली! अब राम लखन कित ह्वै हैं। यह है संतति वियोगिनी माता का हृदय! यह है कि वात्सल्य रस का अद्भुत आकर्षण। यह पद गूढ़ स्नेह भाव का कैसा अच्छा द्योतक है। ‘आली! अब राम लकन कित ह्वै हैं?’ इन शब्दों में कैसा हृदय स्पर्शी करुण संगीत भरा हुआ है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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