प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 24

प्रेम योग -वियोगी हरि

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मोह और प्रेम

‘आजु गवन तोर आवै, बैठि भानु सुख राज’ और इन वीरों द्वारों- में कितना भारी अंतर है। बात यह है कि वह मोह है और यह प्रेम है।

मोह और प्रेम का एक दृश्य और देख लीजिए। कुमार सिद्धार्थ वासनात्मक मोह को लात मारकर प्रेम साम्राज्य में पदार्पण करते हुए अपनी प्राण प्रिया यशोधरा से कहते हैं-

अंक बीच बसि कबहुँ कबहुँ, हे प्रिये! तिहारे,
अस्तत होत रवि ओर रहौं निरखत मन मारे।
अरुण प्रतीची ओर जान हित छटपटात मन,
सोचौं कैसे अस्ताचल के बसनहार जन।
ह्वै हैं जग में परे न जाने केते प्रानी,
हमैं चाहिए प्रेम करने तिनसों हित ठानी।
परति ब्यथा मोहि जानि आज ऐसी कछु मारी,
सकत न तव मृदु अधर जाहि चुम्बनसों टारी।। - रामचंद्र शुक्ल

प्रिये! अब मुझे तुम्हारे प्रणय चुम्बन और प्रगाढ़ालिंगन का क्षुद्र मोह त्यागना ही होगा, कारण कि मेरे हृदय में अज्ञात प्राणि मात्र से प्रेम करने की जो प्रचण्ड अग्नि जल रही है और उसे यह चुम्बन और आलिंगन किसी प्रकार शान्त न कर सकेगा। प्रिये! आज मैं अपने अन्तस्तल में कुछ ऐसा सुन रहा हूँ।

मरमत हैं भव चक्र बीच जड़ अन्ध जीव ये सारे,
उठौ- उठौ, माया सुत! बनिहै नाहिं बिना उद्धारे।
छाड़ौ प्रेम जाल प्रेमिन – हित, दुख मन में अब लाओ,
वैभव तजौ, विषाद विलोकौ, औ निस्तार बताओ।।- रामचंद्र शुक्ल

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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