प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 233

प्रेम योग -वियोगी हरि

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दास्य और तुलसी दास

कैसा निरंकुश है मेरा यह मन मातंग! यह दुर्जय कैसे जीता जाय-

हौं हारय्यौ करि जतन विविध विधि अति सै प्रबल अजै।
हाँ, अब यही एक उपाय है कि-
तुलसिदास, बस होइ तबहिं जब प्रेरक प्रभु बरजै।

वह लीलामय प्रेरक प्रभु ही कभी कृपाकर इसे अपने वश में करा दें तो हो सकता है; नहीं, तो नहीं। पर इस ओर भला वह क्यों देखने चले! वह तो मुझे, न जाने कबसे भुला बैठे हैं। समझ में नहीं आता कि क्यों ऐसा व्यवहार मेरे साथ किया गया-

काहे तें हरि मोहिं बिसारो?
जानत निज महिमा, मेरे अघ, तदपि न नाथ सँभारो!

लो, रह तो दो आज साफ साफ अपने मन की सारी बातें। आखिर मुझे भुला क्यों दिया, मेरे मालिक! तुमने अपने सेवकों के दोषों पर न्याय विचार किया, तो हो चुका! पर ऐसा तुम करोगे नहीं, विचाराधीश! अपने दासों के दोषों को यदि तुम मन में लाते होते, तो बड़े बड़े धर्म धुरंधरों को छोड़कर व्रज के गँवार ग्वालों के बीच क्यों बसने जाते? अछूत भीलनी के जूठे बेर क्यों खाते? दासी पुत्र विदुर के घर का साग पात क्यों आरोगते? तुम्हारे संबंध में तो यही प्रसिद्ध है कि-

निज प्रभुता बिसारि जनके बस होत, सदा यह रीति।
देखो न-
जाकी माया बस बिरंचि सिव नाचत पार न पायो।
करतल ताल बजाइ ग्वाल जुवतिन्ह सोइ नाच नचायो।।

इससे तो अब यही जान पड़ता है कि तुम्हें न तो कुलीन धनी ही प्यारे हैं और न पंडित या ज्ञानी ध्यानी ही। तुम्हें तो नाथ,

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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