प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 215

प्रेम योग -वियोगी हरि

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दास्य

सांसारिक अभिलाषाओं का अंकुर सच्चे भक्त के हृदय स्थल में जम ही नहीं करता, क्योंकि राग द्वेषादि तभी तक जीव की सद् वृत्तियों को लूटते रहते हैं, घर तभी तक उसे जेलखाना है और मोह तभी तक उसके पैर की बेड़ी है, जब तक नाथ! वह तुम्हारा दास नहीं हो गया-

तावद्रगादयः स्तेनास्तावत्कारागृहं गृहम्।
तावन्मोहोऽङ्घ्रिनिगडो यावत्कृष्ण न ते जनाः।।

जिसका तुमसे स्वाभाविक प्रेम हो गया, जो तुमसे सिवा तुम्हारी कृपा के और कुछ नहीं चाहता, उसके हृदय में भला रागादि लुटेरे अपना अड्डा जमायेंगे! उसका मनोमंदिर तो प्रभो! तुम्हारा खास निवास स्थान है-

जाहि न चाहिय कबहुँ कछु, तुम्ह सन सहज सनेहु।
बसहु निरन्तर तासु मन, सो रावर निज गेहु।। - तुलसी

जहाँ राम हैं, वहाँ काम का क्या काम! काम वहीं रहेगा, जहाँ राम न होंगे-

जहाँ राम तहँ काम नहिं, जहाँ काम नहिं राम।
एक संग नहिं रहि सकैं, ‘तुलसी’ छाया धाम।।

नाथ! मैं मैं और अनन्य दास! असम्भव है, मेरे लिये असम्भ है अनन्य दासत्व की प्राप्ति। अनन्य दास का लक्षण तो तुमने भक्ताग्रगण्य मारुति से कुछ ऐसा कहा था-

सो अनन्य जाके असि मति न टरइ हनुमन्त।
मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवन्तर।। - तुलसी

मैं तो जन्म जन्म का अपराधी हूँ, कृतघ्न हूँ, नख से शिख तक विकारों से भरा हुआ हूँ। सच पूछो तो विनती करना तो दूर है, मैं तुम्हें अपना मुँह दिखाने लायक भी नहीं हूँ। कबीर ने बिल्कुल सच कहा है-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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