प्रेम योग -वियोगी हरि
विश्व प्रेमआप श्रीरामचंद्रजी की कुश शय्या देखकर उसकी प्रदक्षिणा करते हैं। जहाँ जहाँ उनके चरणों के चिह्न मिलते हैं, तहाँ तहाँ की पवित्र धूल आँखों से लगाते हैं। धन्य है प्रिय के पदारविन्दों की वह धूल! उस धूल के लिए कितने पगले नहीं ललचाये रहते। एक कृष्णानुरागिनी गोपिका, पवन से अपने प्रियतम के पैरों की धूल, देखिये, किस लालसा के साथ मँगा रही है- बिरहबिथा की मूरि आँखिन में राखौं पूरि- महाकवि गालिब का भी एक ऐसा ही भाव है। कहते हैं- जहाँ तेरा नक़शे कदम देखते हैं, प्यारे, जहाँ तेरा चरण चिह्न हम देखते हैं, उस स्थान को हम स्वर्ग से भी बढ़कर समझने लगते हैं। वह स्थान किस तीर्थ स्थान से कम पुण्य क्षेत्र है। मीर ने खूब कहा है- आँखें लगी रहेंगी बरसों वहीं समोंकी, अस्तु, अब महात्मा भरत उस भाग्यवती कुश शय्या के समीप आभूषणों से गिरे हुए दो चार सोने के सितारे देखते हैं, और उन्हें जनक तनया सीता के ही तूल्य पूज्य समझकर अपने माथे पर भक्ति पूर्वक रख लेते हैं। बलिहारी! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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