प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमी का हृदयकविवर विहारी अपने आश्चर्य को और भी अनोखे ढंग से प्रकट कर रहे हैं! कहते हैं- देखौं जगत बैसिये, साँकर लगी कपाट। कौन जाने, वह काला चोर किधर होकर आता है और दिल पर अपना चित्र खिंचाकर किस राह से कब भाग जाता है! हाय री, प्रेममय हृदय की विरह वेदना! कितनी करुणा और सरसता बहा करती है तेरी धवलधारा के साथ! किसे थाह मिली है तेरी तरुण तरलता की। कौन यथार्थ वर्णन कर सकता है तेरी मधुमयी मनोज्ञता का! स्वयं हृदय भी शक्तिहीन हो गया है। दिल में भी अब ताकत नहीं, जो अपनी वेदना का चित्र खींचकर किसी को दिखा सके। उसे पड़ी ही क्या अपनी तसबीर खिंचाने और फिर उसे दुनियाँ को दिखाने की। प्रेमी के पास सिवा उसके वेदनामय हृदय के और है ही क्या! अपने प्रियतम के प्रीत्यर्थ यही प्रेमी की सबसे प्यारी वस्तु है, सबसे पवित्र भेंट है। उसे आप प्रीति के उपहार में देते अपने प्रेमपात्र से किस सादगी के साथ कहते हैं- मैं जाता हूँ दिल को तेरे पास छोड़े, यही पागल हृदय प्रेमी का हृदय है। यही दिल वह दिल है जो किसी का दीवाना हो चुका है। यह वही दिल है जिस पर कवि ने कहा है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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