प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमी का हृदयआफ़त इतनी ही है कि अपना होकर भी वह प्रेम मतवाला हृदय किसी दिन अपना नहीं रह जाता। बेचारे दिलवाले को जबरन बेदिल हो जाना पड़ता है। गोया दिल का रखना कोई जुर्म है। कहाँ जाता है, क्या होता है, यह कौन जाने- सुना है कि उसे अपने प्यारे दिल के छिन या लुट जाने पर भी दिल दीवानगी का एक खास आनन्द मिला करता है। यह भी सुना गया है कि उसकी सबसे पवित्र वस्तु किसी हठीले देवता के चरणों पर चढ़ जाती है, उसकी सबसे महँगी चीज किसी प्यारे गाहक के हाथ में पहुँच जाती है। उसे अपने बेजार दिल की कीमत भी खासी अच्छी मिल जाती है। खासकर उस दिल का दर्द तो उस अनोखे गाहक को बहुत पसंद आता है। एक बेदिल ने क्या अच्छा कहा है- दर्दे दिल कितना पसंद आया उसे, खैर, अच्छा ही हुआ, तो ऐसा दर्दीला दिल बिक गया, छिन गया या लुट गया। सचमुच ऐसा दिल एक आफत ही है। उस्ताद जौक ने कहा है- दिल का या हाल है, फट जाय है सौ जायसे और, अरे, रफू करके उस फटे कटे दिल का करते ही क्या! ऐसा हृदय तो जान मानकर गँवाया गया है। बात यह है न, कि मर मिटकर ही अपनी कोई प्यारी चीज हासिल होती है। दिल इसीलिए दे दिया गया है कि प्रियतम के मार्ग के प्रत्येक रज कण में वह समा जाय, या उस प्यारे की गली का वह, खुद ही जर्रः जर्रः बन जाय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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