प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 175

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेमाश्रु

न आवे नींद, ऐसी कुछ जरुरत भी नहीं। आँसुओं का प्रवाह न रुकना चाहिए, क्योंकि-

पूरोत्पीडे तडागस्य परीवाहः प्रतिक्रिया।
शोके क्षोभे च हृदयं प्रलापैरेव धार्यते।। - भवभूति

तालाब जब लबालब भर जाता है, तब बाँध तोड़कर उसका पानी बाहर निकाल देना ही बचाव का सुगम उपाय होता है। इसी तरह अत्यंत शोक क्षोभित व्याकुल मनुष्य के हृदय को अश्रुपात ही विदीर्ण होने से बचा लेने का एकमात्र उपाय है।

वह प्रवाह कैसे रुक सकता है। दिल ने आँसुओं का एक भारी खज़ाना जमा कर रखा है। वहाँ पानी ही पानी भरा है। सो अश्रु प्रवाह किसी भाँति रुकने का नहीं। डर इतना ही है कि कहीं वह प्रवाह प्यारे की याद दिल से धोकर न बहा दे। यह न कर सकेगा। यह उसकी ताकत से बाहर की बात है-

याद उसकी दिल से धो दे, ऐ चश्मेतर, तो मानूँ,
अब देखनी मुझे भी तेरी रवानियाँ हैं। - हाली

बहने दो, प्रेमाश्रु प्रवाह बहने दो। प्रेम के आँसू बहाने से ही वह प्रियतम मिलेगा। रोने वाले ही उसे भाते हैं, हँसने वाले नहीं। अपनी रुचि ही तो है। इससे, भाई! उसके प्रेम में मस्त होकर तुम तो खुब रोये जाओ-

‘कबिरा’ हँसना दूर कर, रोने से कर प्रीति।
बिन रोये क्यों पाइये प्रेम पियारा मीत।।

आसुओं की महिमा कौन गा सकता है! अपनी यह अश्रु धारा हमें बड़ी प्यारी लगती है, क्योंकि यह हमें उस प्यारे निठुर की प्रीति के सुंदर उपहार में मिली है-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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