प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 174

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेमाश्रु

कवीन्द्र रवीन्द्र इस मञ्जुल भाव को और भी सुंतरता के साथ अंकित कर रहे हैं। सुनिये-

“’In the moon thou sendest they love letters to me,” said the night to the sun, “I leave my answers in tears upon the grass”

सूर्य से रात्रि कहती है- ‘चंद्रमा के द्वारा तुम मुझे प्रेम पत्र भेजा करते हो। मैं तुम्हारे उन पत्रों के उत्तर घास पर अपने आँसुओं में छोड़ जाती हूँ।’

कैसा मर्मस्पर्शी भाव है! आँसुओं को ओस की बूँदें मानने, और ओस की बूँदों को आँसू मानने में, कवियों! पृथ्वी आकाश का अन्तर है या नहीं? पहले भाव में केवल मनोरंजन है और दूसरे में रसात्मक हृदय स्पर्श।

इसी तरह नीचे के इन दो भावों में भी कितना बड़ा अन्तर अंतर्हित है। एक तो वही मीर साहब की बात है, यानी, ‘सुबह उठते ही आलम को डुबोवेंगे हम’ और दूसरा भाव यह है अब स्वाभाविकता उसमें है या इसमें।

अँसुवनि के परबाह में अति बूड़िबे डेराति।
कहा करै, नैनानिकों नींद नहीं नियराति।।

आँसुओं के प्रवाह में कहीं डूब न जाय, इस डर से, क्या करें, बेचारी नींद आँखों केपास अती तक नहीं। रोने वालों को सोना कहाँ। कवि कुल गुरु कालिदासजी भी यही शिकायत कर रहे हैं। कहाँ कवि कुल गुरु कालिदासजी भी यही शिकायत कर रहे हैं।

मत्संयोगः क्षणमपि भवेत् स्वप्नजोऽपीति निद्रा-
माकाङक्षन्ती नयनसलिलोत्पीडरुद्धावकाशाम्।
अर्थात्-
चाहति तनिक नींद झुकि आवै। मति सपने अपनो पति पावे।।
पै अँसुवा नैनन मरि लेहीं। लगन पलक छिनहूँ नहिं देहीं।। - लक्ष्मणसिंह

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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