प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमाश्रुगोपिनु अँसुवान कौ नीर पनारे भये, बहिकैं भये नारे। मीर साहब की भी एक शर्त है। सुनिये- शर्त यह अब्र में हममें है, कि रोचेंगे कल, रहने भी दीजिए अपनी यह शर्त, जनाब! गरीब आलम ने आपका ऐसा क्या बिगाड़ा है, जो उसे आप कल सुबह ही डुबो देने को कमर कस रहे हैं? ऊपर की इन तमाम पंक्तियों को पढ़ या सुनकर आपका सरस हृदय किस भाव से प्रभावित हुआ है? कवियों की इस अतिरंजना से थोड़ी देर के लिए आपका मनोरंजन भले ही हो जाय, पर प्रेम पूर्ण करुणाधारा में भी आपका सरस हृदय डूबकर तन्मय होगा, इसमें हमें महान् संदेह है। यदि आँसुओं की कविता ने हमारी आँखों से दो बूँद आँसू न टपका दिये, तो वह कविता ही क्या हुई! मनोरंजन के लिए और भी तो अनेक रस हैं, बेचारे करुण रस को तो कृपाकर कलाकार कवियों को अपने भाग्य पर यों ही छोड़ देना चाहिए। कवि श्रेष्ठ कालिदास ने मेघदूत में एक स्थल पर लिखा है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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